________________ यह है। प्रमेयकमलमार्तण्ड के 'स्त्रीमुक्तिविचार' में प्रभाचंद्र ने दस कल्पों की मान्यता का उल्लेख श्वेताम्बर सिद्धांत के रूप में किया है। 3. मूलाचार की सेजोगासणिसेजा' आदि 391 वीं गाथा और आराधना की 305 वीं गाथा एक ही है। इसमें कहा है कि वैयावृत्ति करने वाला मुनि रुग्ण मुनि का आहार, औषधि आदि से उपकार करे। इसी गाथा के विषय में कवि वृन्दावनदास को शंका हुई थी कि उसका निवारण करने के लिए उन्होंने दीवान अमरचंदजी को पत्र लिखा था। समाचार अधिकार ‘गच्छे वेजावच्चं' आदि 174 वीं गाथा की टीका में भी वैयावृत्ति का अर्थ शारीरिक प्रवृत्ति और आहारादि से उपकार . करना लिखा है- 'वेजावच्चं वैयावृत्यं कायिकव्यापराहारादिभिरुपंग्रहणम्।' 4. भगवती आराधना की 414 वीं गाथा के समान इसकी भी 387 वीं गाथा में आचारकल्प एवं जीतकल्प ग्रंथों का उल्लेख है, जो यापनीय को मान्य थे और श्वेताम्बर परम्परा में आज भी उपलब्ध हैं। 5. गाथा 277-78-79 में कहा है कि संयमी मुनि और आर्यिकाओं को चार प्रकार के सूत्र कालशुद्धि आदि के बिना नहीं पढ़ना चाहिए। इनसे अन्य आराधना, नियुक्ति, मरणविभक्ति, संग्रह, स्तुति, प्रत्याख्यान, आवश्यक और धर्मकथा आदि पढ़ना चाहिए। ये सब ग्रंथ मूलाचार के कर्ता के समक्ष थे, परंतु कुन्दकुन्द की परम्परा के साहित्य में इन नामों के ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं। 6. मूलाचार 'बावीसं तित्थयरा' 5 और 'सपडिक्कमणो धम्मो'६- इन दो गाथाओं में जो कुछ कहा गया है, वह कुन्दकुद की परम्परा में अन्यत्र कहीं नहीं कहा गया है। ये ही दो गाथाएं भद्रबाहुकृत आवश्यकनियुक्ति में हैं और वह श्वेताम्बर ग्रंथ है। 7. आवश्यकनियुक्ति की लगभग 80 गाथाएं मूलाचार में मिलती हैं और मूलाचार में प्रत्येक आवश्यक का कथन करते समय वट्टकेर का यह कहना कि मैं प्रस्तुत आवश्यक पर समास से (संक्षेप में) नियुक्ति कहूंगा', अवश्य ही अर्थसूचक है, क्योंकि सम्पूर्ण मूलाचार में 'षडावश्यक अधिकार' को छोड़कर अन्य प्रकरणों में नियुक्ति' शब्द शायद ही कहीं आया हो। षडावश्यक के अंत में भी इस (101)