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________________ का ग्रंथ नहीं है। अतः, यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है कि यदि मूलाचार श्वेताम्बर और दिगम्बर- दोनों में से किसी परम्परा का ग्रंथ नहीं है, तो फिर किस परम्परा का ग्रंथ है। यह स्पष्टतः सत्य है कि यह ग्रंथ अचेलकता आदि के सम्बंध में दिगम्बर परम्परा के निकट, किंतु स्त्री-दीक्षा, स्त्री-मुक्ति, आगमों को मान्य करने आदि कुछ बातों में श्वेताम्बर परम्परा से भी समानता रखता है। इससे यह स्पष्टतः सिद्ध होता है कि यह ग्रंथ एक ऐसी परम्परा का ग्रंथ है, जो कुछ रूप में श्वेताम्बरों और कुछ रूप में दिगम्बरों से समानता रखती थी। डॉ. उपाध्ये, पं. नाथूराम प्रेमी के लेखों एवं प्राचीन भारतीय अभिलेखीय तथा साहित्यिक साक्ष्यों के अध्ययन से अब यह स्पष्ट हो गया है कि श्वेताम्बर और दिगम्बरों के बीच एक योजक सेतु का काम करने वाली ‘यापनीय' नाम की एक तीसरी परम्परा भी थी। हम पूर्व में यह स्पष्ट कर चुके हैं कि यापनीय परम्परा जहां अचेलकत्व पर बल देने के कारण दिगम्बर परम्परा के निकट थी, वहीं स्त्री-मुक्ति, केवलीभुक्ति और आगमों की उपस्थिति, आपवादिक रूप में वस्त्र एवं पात्र व्यवहार आदि से श्वेताम्बर परम्परा के निकट थी। मूलाचार की रचना इसी परम्परा में हुई है। आइए इस सम्बंध में कुछ अधिक विस्तार से चर्चा करेंमूलाचार : यापनीय परम्परा का ग्रंथ बहुश्रुत दिगम्बर विद्वान् पं. नाथूरामजी 'प्रेमी' ने इसे यापनीय परम्परा का ग्रंथ माना है, इस सम्बंध में वे लिखते हैं 2 - 'मुझे ऐसा लगता है कि यह ग्रंथ कुन्दकुन्द का तो नहीं ही है, उनकी विचार परम्परा का भी नहीं है, बल्कि यह उस परम्परा का जान पड़ता है, जिसमें शिवार्य और अपराजित हुए हैं। कुछ बारीकी से अध्ययन करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है' - 1. मूलाचार और भगवती आराधना की पचासों गाथाएं एक सी और समान अभिप्राय प्रकट करने वाली हैं। 2. मूलाचार की ‘आचेलक्कुद्देसिय' आदि 909 वीं गाथा भगवती आराधना की 421 वीं गाथा है। इसमें दस कल्पों के नाम हैं। जीतकल्पभाष्य की-१९७२ वीं गाथा भी यही है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्य टीकाग्रंथों और नियुक्तियों में भी (100)
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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