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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-85 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-81 विरोध श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में हुआ। दिगम्बर-परम्परा में चैत्यवास और भट्टारक-परम्परा का विरोध सर्वप्रथम आचार्य कुन्दकुन्द के अष्टपाहुडट' (लिंगपाहुड 1-22) में प्राप्त होता है। उनके पश्चात आशाधर, बनारसीदास आदि ने भी इसका विरोध किया। श्वेताम्बर परम्परा में सर्वप्रथम आचार्य हरिभद्र ने इसके विरोध में लेखनी चलाई। 'सम्बोधप्रकरण में उन्होंने इन चैत्यवासियों के आगम विरूद्ध आचार की खुलकर आलोचना की, यहां तक कि उन्हें नर-पिशाच भी कहदिया / चैत्यवास कीइसी प्रकार की आलोचना आगे चलकर जिनेश्वरसूरी, जिनचन्द्रसूरि आदि खरतरगच्छ के अन्य आचार्यों ने भी की। ईस्वी सन की दसवीं शताब्दी में खरतरगच्छ का आविर्भाव भी चैत्यवास के विरोध में हुआ था, जिसका प्रारम्भिक-नाम सुविहित-मार्ग या संविग्र-पक्ष था। दिगम्बर-परम्परा में इस युग में द्रविड़-संघ, माथुर संघ, काष्टा-संघ आदि का उदभव भी इसी काल में हुआ, जिन्हें दर्शनसार नामक ग्रन्थ में जैनाभास कहा गया। इस सम्बन्ध में पं. नाथूरामजी 'प्रेमी' ने अपने ग्रन्थ 'जैन साहित्य और. इतिहास' में 'चैत्यवास और वनवास' नामक शीर्षक के अन्तर्गत चर्चा की है, फिर भी उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह कहना कठिन है कि इन विरोधों के बावजूद जैन-संघ इस बढ़ते हुए शिथिलताचार से मुक्ति पा सका, फिर भी यह विरोध जैनसंघ में अमूर्तिपूजक-सम्प्रदायों के उदभव का प्रेरक अवश्य बना। तन्त्र और भक्ति-मार्ग का जैन धर्म पर प्रभाव वस्तुतः, गुप्तकाल से लेकर दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी तक का युग पूरे भारतीय समाज के लिए चरित्रबल के हास और ललित कलाओं के विकास का युग है। यही काल है, जब खजुराहो और कोणार्क के मन्दिरों में कामुक अंकन किये गये। जिन-मन्दिर भी इस प्रभाव से अछूते नहीं रह सके। यही वह युग है, जब कृष्ण के साथ राधा और गोपियों की कथा को गढ़कर धर्म के नाम पर कामुकता का प्रदर्शन किया गया। इसी काल में तन्त्र और वाम-मार्ग का प्रचार हुआ, जिसकी अग्नि में बौद्ध भिक्षु-संघ तो पूरी तरह जल मरा, किन्तु जैन-भिक्षु-संघ भी उसकी लपटों की झुलस.
SR No.004421
Book TitleJain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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