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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-59 - जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-55 दिया, साथ ही धर्म–साधना का जो बहिर्मुखी दृष्टिकोण था, उसे आध्यात्मिकसंस्पर्श द्वारा अन्तर्मुखी बनाया। इससे उस युग के वैदिक-चिन्तन में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन उपस्थित हुआ! इस प्रकार, वैदिक-संस्कृति को रूपान्तरित करने का श्रेय सामान्य रूप में श्रमण-परम्परा को और विशेष रूप से जैन-परम्परा को है। अर्हत्-ऋषि-परम्परा का सौहार्दपूर्ण इतिहास प्राकृत-साहित्य में 'ऋषिभाषित' (इसिभासियाई) और पालि-साहित्य में 'थेरगाथा' ऐसे ग्रन्थ हैं, जो इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि अति प्राचीनकाल में आचार और विचारगत विभिन्नताओं के होते हुए भी अर्हत् ऋषियों की समृद्ध परम्परा थी, जिनमें पारस्परिक-सौहार्द था। 'ऋषिभाषित', जो कि प्राकृत जैन-आगमों और बौद्ध-पालिपिटकों में अपेक्षाकृत रूप से प्राचीन है और जो किसी समय जैन-परम्परा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता था, यह अध्यात्मप्रधान-श्रमणधारा के पारस्परिकसौहार्द और एकरूपता को सूचित करता है। यह ग्रन्थ आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के पश्चात् तथा शेष सभी प्राकृत और पालि-साहित्य के पूर्व ई. पू. लगभग चतुर्थ शताब्दी में निर्मित हुआ है। इस ग्रन्थ में निर्ग्रन्थ, बौद्ध, औपनिषिदिक एवं आजीवक आदि अन्य श्रमण-परम्पराओं के 45 अर्हत् ऋषियों के उपदेश संकलित हैं। इसी प्रकार, बौद्ध-परम्परा के ग्रन्थ थेरगाथा में भी श्रमणधारा के विभिन्न ऋषियों के उपदेश एवं आध्यात्मिकअनुभूतियाँ संकलित हैं। ऐतिहासिक एवं अनाग्रही-दृष्टि से अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि न तो 'ऋषिभासित' (इसिभासियाई) के सभी ऋषि जैन-परम्परा के हैं और न थेरगाथा के सभी थेर (स्थविर) बौद्धपरम्परा के हैं, जहाँ ऋषिभाषित में सारिपुत्र, वात्सीपुत्र (वज्जीपुत्र) और महाकाश्यप बौद्ध-परम्परा के हैं, वहीं उद्दालक, याज्ञवल्क्य, अरुण, असितदेवल, नारद, द्वैपायन, अंगिरस, भारद्वाज आदि औपनिषिदिक-धारा से सम्बन्धित हैं, तो संजय (संजय वेलट्ठिपुत्त), मंखली गोशालक, रामपुत्त आदि अन्य स्वतन्त्र श्रमण-परम्पराओं से सम्बन्धित हैं। इसी प्रकार, 'थेरगाथा' में वर्द्धमान आदि जैनधारा के, तो नारद आदि औपनिषिदिक-धारा
SR No.004421
Book TitleJain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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