________________ जैन धर्म एवं दर्शन-132 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-1280 जैनकुमारसंभव, कादम्बरीमण्डन, चन्द्रविजयप्रबंध, काव्यमण्डन आदि।. संस्कृत भाषा में निबद्ध जैन कथा साहित्य के ग्रन्थ... जैन-आचार्यों ने धार्मिक एवं नैतिक-आचार-नियमों एवं उपदेशों को लेकर अनेक कथाओं एवं कथा-ग्रन्थों की रचना की है। पूर्वाचायाँ द्वारा रचित ग्रन्थों की टीका, वृत्ति आदि में उन कथाओं को समाहित किया है। इनमें धर्मकथानुयोग की स्वतंत्र रचनाएँ, पुरुषपात्र प्रधान बृहद-कथाएँ, पुरुषपात्रप्रधान लघु कथाएँ, स्त्रीपात्रप्रधान रचनाएँ, तीर्थमाहात्म्य-विषयक कथाएँ, तिथि–पर्व-पूजा एवं स्तोत्रविषयक कथाएँ, व्रत-पर्व एवं पूजा विषयक कथाएँ, परीकथाएँ, मुग्धकथाएँ, नीतिकथाएँ, आचार-नियमों के पालन एवं स्पष्टीकरण-सम्बन्धी कथाएँ आदि, इन कथाओं एवं कथा-ग्रन्थों की संख्या इतनी है कि यदि इनके नाम मात्र का उल्लेख किया जाये, तो भी एक स्वतंत्र ग्रन्थ बन जायेगा। ऐतिहासिक महाकाव्य एवं अन्य कथाएँ ___ पौराणिक-काव्यों एवं कथा-साहित्य के अतिरिक्त जैनाचार्यों ने संस्कृत में ऐतिहासिक-कथा-ग्रन्थों की रचना भी की है, जो निम्नांकित है- गुणवचनद्वात्रिंशिका, द्वयाश्रयमहाकाव्य, वस्तुपाल-तेजपाल की कीर्त्तिकथा- सम्बन्धी साहित्य, सुकृतसंकीर्तन, वसन्तविलास, कुमारपालभूपालचरित, वस्तुपालचरित, जगडूचरित, सुकृतसागर, पेथडचरित आदि। इसके साथ ही, ऐतिहासिक-संस्कृत-ग्रन्थों के अर्न्तगत जैनाचार्यों ने निम्न प्रबन्ध साहित्य की भी रचना की है- प्रबंधावलि, प्रभावकचरित, प्रबंधचिन्तामणि, विविधतीर्थकल्प, प्रबंधकोश, पुरातनप्रबन्धसंग्रह आदि इन प्रबंन्धों के साथ ही कुछ प्रशस्तियाँ भी संस्कृत भाषा में मिलती हैं, वे निम्न हैं- वस्तुपाल और तेजपाल के सुकृतों की स्मारक-प्रशस्तियाँ, सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी, वस्तुपाल-तेजपालप्रशस्ति, वस्तुपाल-प्रशस्ति, अममस्वामीचरित की प्रशस्ति आदि। इन प्रशस्तियों के अतिरिक्त कुछ पट्टावली और गुर्वावलि भी संस्कृत में मिलती हैं, यथा- विचारश्रेणी या स्थविरावली, गणधरसार्द्धशतक,