SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-130 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-126 न्यायावतार पर श्वेताम्बराचार्य सिद्धऋषि ने विस्तृत टीका की रचना की। इसी काल में प्रभाचन्द, कुमुदचन्द्र एवं वादिराजसूरि नामक दिगम्बर आचार्यों ने क्रमशः प्रमेयकमलमार्तण्ड न्यायकुमुदचन्द्र, न्याय-विनिश्चय टीका आदि महत्वपूर्ण दार्शनिक-ग्रन्थों की रचना की। इसके पश्चात् 11वीं शताब्दी में देवसेन ने लघुनयचक्र, बृहदनयचक्र, आलापपद्धति, माणिक्यनन्दी के परीक्षामुख तथा अनन्तवीर्य ने सिद्धि-विनिश्चय टीका आदि दार्शनिक-कृतियों का सृजन किया। इसी कालखण्ड में श्वेताम्बर-परम्परा के अभयदेवसूरि ने सिद्धसेन के सन्मति-तर्क पर वाद-महार्णव नामक टीका ग्रन्थ की रचना की। इसी क्रम में दिगम्बर आचार्य अनन्तकीर्ति ने लघुसर्वज्ञसिद्धि, बृहद्सर्वज्ञसिद्धि, प्रमाणनिर्णय आदि दार्शनिक-ग्रन्थों की रचना की थी। इसी कालखण्ड में श्वेताम्बर-परम्परा में आचार्य वादिदेवसूरि हुए, उन्होंने प्रमाण-नयतत्त्वालोक तथा उसी पर स्वोपज्ञ-टीका के रूप में स्यादवाद-रत्नाकर जैसे जैन-न्याय के ग्रन्थों का निर्माण किया और उनके ही शिष्य रत्नप्रभसूरि ने रत्नाकरावतारिका की रचना की थी। इन सभी में भारतीय दर्शन एवं न्याय की अनेक मान्यताओं की समीक्षा भी है। 12वीं शताब्दी में हुए श्वेताम्बर आचार्य हेमचन्द्र ने मुख्य रूप से जैन-न्याय पर प्रमाण-मीमांसा (अपूर्ण) और दार्शनिक-समीक्षा के रूप में अन्ययोगव्यवच्छेदिका-दो महत्वपूर्ण दार्शनिक-ग्रन्थों की रचना की। यद्यपि संस्कृत-व्याकरण एवं साहित्य के क्षेत्र में उनका अवदान प्रचुर है, तथापि हमने यहाँ उनके दार्शनिक-ग्रन्थों की ही चर्चा की है। यद्यपि 13वीं, 14वीं, 15वीं और 16वीं शताब्दी में भी जैन आचार्यों ने संस्कृत-भाषा में कुछ दार्शनिक-ग्रन्थों की रचना की थी, किन्तु वे ग्रन्थ अधिक महत्वपूर्ण न होने से हम यहाँ उनकी चर्चा नही कर रहे हैं, यद्यपि इस कालखण्ड में कुछ दार्शनिक-ग्रन्थों की टीकाएँ, जैसे अन्ययोगव्यवछेदिका की स्यादवाद-मन्जरी नामक टीका, षडदर्शनसमुच्चय की टीका आदि भी लिखी गई थीं, किन्तु विस्तारभय से उन सबमें जाना उचित नहीं हैं। 17 वीं शताब्दी में श्वेताम्बर-परम्परा में उपाध्याय यशोविजय नामक एक प्रसिद्ध जैन लेखक हुए, जिनके अध्यात्मसार, ज्ञानसार आदि दर्शन के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। अध्यात्म के क्षेत्र में अध्यात्ममतसमीक्षा, अध्यात्मसार, ज्ञानसार
SR No.004421
Book TitleJain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy