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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-287 जैन-तत्त्वमीमांसा-139 कर्म का प्रदेशोदय होता है, लेकिन विपाकोदय नहीं होता है। उसमें दु:खद वेदना के तथ्य तो उपस्थित होते हैं, लेकिन दु:खद वेदना की अनुभूति नहीं है। इसी प्रकार, प्रदेशोदय-कर्म के फल का तथ्य तो उपस्थित हो जाता है, लेकिन उसकी फलानुभूति नहीं होती है, अत: वह अविपाक-निर्जरा कही जाती है। इसे सकाम-निर्जरा भी कहते हैं, क्योंकि इसमें कर्म-परमाणओं को आत्मा से अलग करने का संकल्प होता है। यह औपक्रमिक-निर्जरा भी कही जाती है, क्योंकि इसमें उपक्रम या प्रयास होता है। प्रयासपूर्वक, तैयारीसहित, कर्मवर्गणा के पुद्गलों को आत्मा से अलग किया जाता है। यह कर्मों को निर्जरित (क्षय) करने का कृत्रिम प्रकार है। अनौपक्रमिक या सविपाक-निर्जरा अनिच्छापूर्वक, अशान्त एवं व्याकुल चित्त-वृत्ति से पूर्वसंचित कर्म के प्रतिफलों का सहन करना है, जबकि अविपाक-निर्जरा इच्छापूर्वक समभावों से जीवन में आई हुई परिस्थितियों का मुकाबला करना है। 7.जैन-साधना में औपक्रमिक-निर्जरा का स्थान जैन-साधना की दृष्टि से निर्जरा का पहला प्रकार, जिसे सविपाक या अनौपक्रमिक- निर्जरा कहते हैं, अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। यह पहला प्रकार साधना के क्षेत्र में ही नहीं आता है, क्योंकि कर्मों के बन्ध और निर्जरा का यह क्रम तो सतत चला आ रहा है। हम प्रतिक्षण पुराने कर्मों की निर्जरा करते रहते हैं, लेकिन जब तक नवीन कर्मों का सृजन समाप्त नहीं होता, ऐसी निर्जरा से सापेक्ष रूप में कोई लाभ नहीं होता, जैसे- कोई व्यक्ति पुराने ऋण का भुगतान तो करता रहे, लेकिन नवीन ऋण भी लेता रहे, तो वह ऋण-मुक्त नहीं हो पाता। जैन-दर्शन के अनुसार, आत्मा सविपाक-निर्जरा तो अनादिकाल से करता आ रहा है, लेकिन निर्वाण का लाभ प्राप्त नहीं कर सका। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं- "यह चेतन आत्मा कर्म के विपाककाल में सुखद और * दु:खद फलों की अनुभूति करते हुए पुन: दु:ख के बीजरूप आठ प्रकार के कर्मों का बन्ध कर लेता है, क्योंकि कर्म जब अपना विपाक-फल देते हैं, तो किसी निमित्त से देते हैं और अज्ञानी आत्मा शुभ-निमित्त पर राग और अशुभ-निमित्त पर द्वेष करके नवीन बन्ध कर लेता है।"
SR No.004420
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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