________________ जैन धर्म एवं दर्शन-255 जैन-तत्त्वमीमांसा-107 वैज्ञानिक सत्य है कि जल यौगिक है। 3. शब्द आकाश का गुण नहीं, अपितु भाषावर्गणारूप स्कंधों का अवस्थान्तर है, इसलिए यंत्रग्राह्य है। विश्व किसी के द्वारा निर्मित नहीं, क्योंकि सत् की उत्पत्ति या विनाश संभव नहीं। सत् का लक्षण ही उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त होना है। पुद्गल निर्मित विश्व मिथ्या एवं असत् नहीं है, सत्-स्वरूप 5. प्रकाश, अंधकार तथा छाया- ये पुद्गल की ही पृथक्-पृथक् पर्याय हैं, यंत्र ग्राह्य हैं। इनके स्वरूप की सिद्धि आधुनिक सिनेमा, फोटोग्राफी, केमरा आदि द्वारा हो चुकी है। आतप एवं उद्योत भी परमाणु एवं स्कंधों की ही पर्याय हैं, संग्रहणीय 7. जीव तथा पुद्गलं के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक आने-जाने में सहकारी अचेतन अमूर्तिक-धर्म नामक द्रव्य है, जो सर्व जगत् में व्याप्त है। विज्ञानवेत्ताओं ने उसे ईश्वर नाम दिया है। 9. जीव और पुद्गलों की स्थिति (ठहरने) में अधर्म-द्रव्य सहकारी है, जिसे अमूर्त, अचेतन एवं विश्वव्यापी बताया गया है। वैज्ञानिकों ने . इसे गुरुत्वाकर्षण-शक्ति नाम दिया है। .. 10. आकाश एक स्वतन्त्र द्रव्य है, जो समस्त द्रव्यों को अवकाश (स्थान) प्रदान करता है। विज्ञान की भाषा में इसे 'स्पेस' कहते हैं। काल भी एक भिन्न स्वतंत्र द्रव्य है, जिसे मिन्कों ने ‘फोर डाइमेन्शनल थ्योरी' के नाम से अभिहित किया है / समय को काल-द्रव्य की ही एक पर्याय माना गया है। (देखिए-सन्मति सन्देश, फरवरी, 67, पृष्ठ 24, प्रो.. निहालचन्द) 12. वनस्पति एकेन्द्रिय-जीव है, उसमें स्पर्श-संबंधी ज्ञान होता है। स्पर्श-ज्ञान के कारण ही 'लाजवन्ती' नामक पौधा स्पर्श करते ही झुक जाता है। वनस्पति में प्राण-सिद्धि करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु हैं। वनस्पति-शास्त्र चेतनतत्त्व को प्रोटोप्लाज्म नाम देता है।