________________ जैन धर्म एवं दर्शन-254 जैन-तत्त्वमीमांसा-106 उसकी खोज में लगे हुए हैं। समकालीन भौतिकीविदों की क्वार्क की परिभाषा यह है कि जो विश्व का सरलतम और अन्तिम घटक है, वही क्वार्क है। आज भी क्वार्क को व्याख्यायित करने में वैज्ञानिक सफल नहीं हो पाए हैं। आधुनिक विज्ञान प्राचीन जैन-अवधारणाओं को सम्पुष्ट करने में किस प्रकार सहायक हुआ है, उसका एक उदाहरण यह है कि जैन तत्त्व-मीमांसा में एक ओर यह अवधारणा रही है कि एक पुद्गल-परमाणु जितनी जगह घेरता है- वह एक आकाश-प्रदेश कहलाता है, दूसरे शब्दों में, एक आकाश-प्रदेश में एक परमाणु ही रह सकता है, किन्तु दूसरी ओर, आगमों में यह भी उल्लेख है कि एक आकाश-प्रदेश में अनन्त पुद्गल-परमाणु समा सकते हैं। इस विरोधाभास का सीधा समाधान हमारे पास नहीं था, लेकिन विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि विश्व में कुछ ऐसे ठोस द्रव्य हैं, जिनका एक वर्ग इंच का वजन लगभग 8 सौ टन होता है। इससे यह भी फलित होता है कि जिन्हें हम ठोस समझते हैं, वे वस्तुतः कितने पोले हैं, अतः सूक्ष्म अवगाहन-शक्ति के कारण यह संभव है कि एक ही आकाश-प्रदेश में अनन्त परमाणु भी समाहित हो जाएं। . जैनदर्शन का परमाणुवाद आधुनिक विज्ञान के कितना निकट है, इसका विस्तृत विवरण श्री उत्तमचन्द जैन ने अपने लेख 'जैनदर्शन का तात्त्विक-पक्ष परमाणुवाद' में दिया है। हम यहाँ उनके मन्तव्य का कुछ अंश आंशिक-परिवर्तन के साथ उद्धृत कर रहे हैंजैन-परमाणुवाद और आधुनिक विज्ञान जैन-दर्शन की परमाणुवाद पर आधारित निम्न घोषणाएँ आधुनिक विज्ञान के परीक्षणों द्वारा सत्य साबित हो चुकी हैं1. परमाणुओं के विभिन्न प्रकार के यौगिक, उनका विखण्डन एवं संलयन, विसरण, उनकी बंध, शक्ति, स्थिति, प्रभाव, स्वभाव, संख्या आदि का अतिसूक्ष्म वैज्ञानिक-विवेचन जैन-ग्रन्थों में विस्तृत रूप में उपलब्ध है। 2. पानी स्वतंत्र तत्त्व नहीं, अपितु पुद्गल की ही एक अवस्था है। यह