________________ जैन धर्म एवं दर्शन-253 जैन-तत्त्वमीमांसा-105 बन्धन से स्कन्ध के निर्माण की प्रक्रिया को समझाने हेतु तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय का एक सूत्र है- स्निग्धरूक्षत्वात् बन्धः / इसमें स्निग्ध और रुक्ष परमाणुओं के एक-दूसरे से जुड़कर स्कन्ध बनाने की बात कही गयी है। सामान्य रूप से इसकी व्याख्या यह कहकर ही की जाती थी कि स्निग्ध (चिकने) एवं रूक्ष (खुरदुरे) परमाणुओं में बन्ध होता है, किन्तु आज इस सूत्र की वैज्ञानिक दृष्टि से व्याख्या होगी, तो स्निग्ध अर्थात् धनात्मक-विद्युत् से आवेशित एवं रुक्ष अर्थात् ऋणात्मक-विद्युत् से आवेशित सूक्ष्म-कण, जैनदर्शन की भाषा में परमाणु, परस्पर मिलकर स्कन्ध (Molecule) का निर्माण करते हैं। इस प्रकार तो तत्त्वार्थसूत्र का यह सूत्र अधिक विज्ञानसम्मत प्रतीत होता है। प्रो. जी.आर. जैन ने अपनी पुस्तक ब्वउवसवहल व्सक दक छमू में इस सम्बन्ध में विस्तार से विवेचन किया है और इस सूत्र की वैज्ञानिकता को सिद्ध किया है। जहाँ तक भौतिक-तत्त्व के अस्तित्व एवं स्वरूप का प्रश्न है, वैज्ञानिकों एवं जैन-आचार्यों में अधिक मतभेद नहीं हैं। परमाणु या पुद्गल-कणों में जिस अनन्त शक्ति का निर्देश जैन आचार्यों ने किया था, वह अब आधुनिक वैज्ञानिक अन्वेषणों से सिद्ध हो रहा है। आधुनिक वैज्ञानिक इस तथ्य को सिद्ध कर चुके हैं कि एक. परमाणु का विस्फोट भी कितनी अधिक शक्ति का सृजन कर सकता है। वैसे भी, भौतिक-पिण्ड या -पुद्गल की अवधारणा को लेकर वैज्ञानिकों एवं जैन-विचारकों में कोई अधिक मतभेद नहीं देखा जाता। परमाणुओं के द्वारा स्कन्ध (Molecule) की रचना का जैन-सिद्धान्त कितना वैज्ञानिक है, इसकी चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। विज्ञान जिसे परमाणु कहता था, वह अब टूट चुका है। वास्तविकता तो यह हैं कि विज्ञान ने जिसे परमाणु मान लिया था, वह परमाणु था ही नहीं, बह तो स्कन्ध ही था, क्योंकि जैनों की परमाणु की परिभाषा यह है कि जिसका विभाजन नहीं हो सके, ऐसा भौतिक-तत्त्व परमाणु है। इस प्रकार, आज हम देखते हैं कि विज्ञान का तथाकथित परमाणु खण्डित हो चुका है, जबकि जैनदर्शन का परमाणु अभी वैज्ञानिकों की पकड़ में आ ही नहीं पाया है। वस्तुतः, जैनदर्शन में जिसे परमाणु कहा जाता है, उसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने क्वार्क नाम दिया है और वे आज भी