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________________ "जैन धर्म एवं दर्शन-248 ... जैन-तत्त्वमीमांसा-100 भाष्य-वृत्यानुसार गुण-अंश सदृश विसदृश 1. जघन्य+जघन्य नहीं नहीं 2. जघन्य+एकाधिक नहीं है 3. जघन्य+द्वयधिक 4. जघन्य+ष्यादि अधिक 5. जघन्येतर+सम जघन्येतर ___ नहीं है.. 6. जघन्येतर+एकाधिक जघन्येतर 7. जघन्येतर+द्वयधिक जघन्येतर है 8. जघन्येतर+त्र्यादि अधिक जघन्येतर है he to to to to to to. . नहीं नहीं सर्वार्थसिद्धि आदि दिगम्बर व्याख्या-ग्रन्थों के अनुसार गुण-अंश सदृश विसदृश 1. जघन्य+जघन्य नहीं 2. जघन्य+एकाधिक नहीं नहीं 3. जघन्य+द्वयधिक 4. जघन्य+त्र्यादि अधिक . . 5. जघन्येतर+सम जघन्येतर , नहीं नहीं 6. जघन्येतर+एकाधिक जघन्येतर नहीं 7. जघन्येतर+द्वयधिक जघन्येतर. है है 8. जघन्येतर+त्र्यादि अधिक जघन्येतर नहीं नहीं इस बन्ध-विधान को स्पष्ट करते हुए अपनी तत्त्वार्थसूत्र की व्याख्या में पं. सुखलालजी लिखते हैं कि स्निग्धत्व और रूक्षत्व- दोनों स्पर्श-विशेष हैं। ये अपनी-अपनी जाति की अपेक्षा एक-एक रूप होने पर भी परिणमन की तरतमता के कारण अनेक प्रकार के होते हैं। तरतमता यहाँ तक होती है कि निकृष्ट स्निग्धत्व और निकृष्ट रूक्षत्व तथा उत्कृष्ट स्निग्धत्व और उत्कृष्ट रूक्षत्व के बीच अनन्तानन्त अंशों का अन्तर रहता है, जैसे- बकरी और ऊँटनी के दूध के स्निग्धत्व में, स्निग्धत्व दोनों में ही होता है, परन्तु
SR No.004420
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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