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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-352 - जैन ज्ञानमीमांसा-60 2. स्मृति-प्रमाण जैनदर्शन में परोक्ष-प्रमाणों के अन्तर्गत निम्न पाँच प्रमाणों की चर्चा की गई है - 1. स्मृति, 2. प्रत्यभिज्ञान, 3. तर्क या ऊह, 4. अनुमान और 5. आगम या शब्द / केवल एक अपवाद है, न्याय-विनिश्चय के टीकाकार वादीराजसूरि। उन्होंने पहले परोक्ष के दो भेद किये -- 1. अनुमान और 2. आगम और फिर अनुमान के मुख्य और गौण - ऐसे दो भेद करके स्मृति, प्रत्यभिज्ञान और तर्क का अन्तर्भाव गौण अनुमान में किया है। जैनदर्शन द्वारा स्वीकृत इस प्रमाण-योजना को अतीन्द्रिय आत्मिक-प्रत्यक्ष के अन्तर्गत एवं न्यायदर्शन में योगज-प्रत्यक्ष के रूप में स्वीकृत माना है। जहाँ तक सांव्यावहारिक-प्रत्यक्ष या इन्द्रिय-प्रत्यक्ष का प्रश्न है, उसे सभी भारतीय- दर्शनों ने प्रमाण माना है, चाहे उसके स्वरूप आदि के सम्बन्ध में थोड़ा मतभेद रहा हो। परोक्ष प्रमाणों में अनुमान और आगम को भी अधिकांश भारतीय-दर्शनों ने प्रमाण की कोटि में माना है। प्रत्यभिज्ञा को भी न्यायदर्शन प्रत्यक्ष-प्रमाण के एक भेद के रूप में स्वीकार करता है, मात्र अन्तर यही है कि जहाँ जैन-दार्शनिक उसे परोक्ष-प्रमाण का भेद मानते हैं, वहाँ न्यायदर्शन उसे प्रत्यक्ष-प्रमाण का एक भेद मानता है। यद्यपि यह अन्तर अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि अकलंक ने भी उसे शब्द-संसर्ग से रहित होने पर सांव्यावहारिक-प्रत्यक्ष के अन्तर्गत मान ही लिया था। अपने स्वरूप की दृष्टि से भी प्रत्यभिज्ञान में ऐन्द्रिक-प्रत्यक्ष और स्मृति - दोनों का योग होता है, अतः वह आंशिक रूप से प्रत्यक्ष और आंशिक रूप से परोक्ष सिद्ध होता है। न्यायदर्शन में स्मृति को ज्ञान का साधक तत्त्व तो माना है, किन्तु उसे प्रमाण-रूप नहीं बताया है, जबकि जैनदर्शन स्मृति को प्रमाण-रूप मानता है। जैनों के स्मृति-प्रमाण की समीक्षा नैयायिकों और बौद्धों - दोनों ने की है। ‘स्मृति' शब्द का अर्थ है - पूर्वानुभूत विषय का पुनः ज्ञान या बोध होना। स्मृतिप्रमाण में भूतकालीन अनुभूति का वर्तमान-काल में स्मरण होता है, वर्तमानकालीन प्रत्यक्ष से भूतकालीन अनुभूति अर्थात् स्मृति की तुलना करने पर, यह वही है - ऐसा जो बोध होता है, वह प्रत्यभिज्ञान
SR No.004419
Book TitleJain Gyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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