________________ जैन धर्म एवं दर्शन-340 जैन ज्ञानमीमांसा-48 को नोइन्द्रिय (Quasi sense organ) कहा जाता है। जैन-दर्शन में कर्मेन्द्रियों का विचार उपलब्ध नहीं है, फिर भी पाँच कर्मेन्द्रियों में से तीन तो उसकी दस बल की अवधारणा में से वाक्बल, शरीरबल और श्वासोच्छवास-बल में समाविष्ट हो जाती हैं। यद्यपि जैनों ने जननेन्द्रिय और गुदा को पृथक् से इन्द्रिय तो नहीं कहा है, फिर भी वे शारीरिक-शक्ति के रूप में शरीर-बल में समावष्टि हैं। (ब) बौद्ध-दृष्टिकोण- बौद्ध-ग्रन्थ विसुद्धिमग्ग में इन्द्रियों की संख्या 22 वर्णित है। बौद्ध-विचारधारा उक्त पाँच इन्द्रियों एवं मन के अतिरिक्त पुरुषत्व, स्त्रीत्व, सुख-दुःख, शुभ-अशुभ मनोभावों को भी इन्द्रियों में मान लेती है। (स) गीता का दृष्टिकोण- गीता में भी जैन-दर्शन के समान पाँच इन्द्रियों एवं छठवें मन को स्वीकार किया गया है। शांकर-वेदान्त एवं सांख्य दर्शन में इन्द्रियों की संख्या 11 मानी गई है - 5 ज्ञानेन्द्रियाँ, 5 कर्मेन्द्रियाँ और 1 अन्तःकरण। . जैन-दर्शन में इन्द्रिय-स्वरूप- , जैन-दर्शन में उक्त पाँचों इन्द्रियाँ दो प्रकार की हैं- 1. द्रव्येन्द्रिय, 2.. भावेन्द्रिय / इन्द्रियों का बाह्य संरचनात्मक पक्ष (Structural aspect) द्रव्येन्द्रिय है और उनका आन्तरिक क्रियात्मक-पक्ष (Functioual aspect) भावेन्द्रिय है। इनमें से प्रत्येक में पुनः उपविभाग किए गए हैं, जैसा कि निम्न सारणी से स्पष्ट है : इन्द्रिय द्रव्येन्द्रिय भावेन्द्रिय निवृत्ति उपकरण (इन्द्रिय-रक्षक अंग) (इन्द्रिय-अंग) बहिरंग अंतरंग लब्धि अंतरंग उपयोग अंतरंग जैन-दर्शन में इन्द्रियों के ये दो विभाग द्रव्य-इन्द्रिय और भाव-इन्द्रिय