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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-313 जैन ज्ञानमीमांसा -21 नियत घटनाओं का पूर्वज्ञान हो सकता है, अनियत घटनाओं का नहीं। यदि सर्वज्ञ को भविष्य का पूर्वज्ञान होता है और वह यथार्थ भविष्यवाणी कर सकता है, तो इसका अर्थ है कि भविष्य की समस्त घटनाएँ नियत हैं। भविष्यदर्शन और पूर्वज्ञान में पूर्वनिर्धारण गर्भित है। यदि भविष्य की सभी घटनाएँ पूर्वनियत हैं, तो वैयक्तिक-स्वातन्त्र्य और पुरुषार्थ का क्या अर्थ है ? यदि जीवन की समस्त घटनाएँ पूर्वनियत हैं, तो नैतिक-आदर्श, वैयक्तिक-स्वातन्त्र्य और पुरुषार्थ का कोई अर्थ नहीं रहता। सर्वज्ञ के पूर्वज्ञान में कर्म का चयन भी निश्चित होता है, उसमें कोई अन्य विकल्प नहीं होता, तब वह चयन चयन ही नहीं होगा और चयन नहीं है, तो उत्तरदायित्व भी नहीं होगा, अर्थात् सर्वज्ञतावाद अनिवार्यतः नियतिवाद की ओर ले जाता है। सर्वज्ञता का अर्थ ___ जैन-दर्शन सर्वज्ञता को स्वीकार करता है। जैनागमों में अनेक ऐसे स्थल हैं, जिनमें तीर्थंकरों एवं केवलज्ञानियों को त्रिकालज्ञ या सर्वज्ञ कहा गया है। व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, अंतकृत्दशांगसूत्र एवं अन्य जैनागमों में इस त्रिकालज्ञ सर्वज्ञतावादी धारणा के अनुसार गोशालक, श्रेणिक, कृष्ण आदि के भावी जीवन के सम्बन्ध में भविष्यवाणी भी की गई है। यह भी माना गया है कि सर्वज्ञ जिस रूप में घटनाओं का घटित होना जानता है, वे उसी रूप में घटित होती हैं। कार्तिकेयानुप्रेक्षा में कहा गया है कि जिसकी जिस देश, जिस काल और जिस प्रकार से जन्म अथवा मृत्यु की घटनाओं को सर्वज्ञ ने देखा है, वे उसी देश, उसी काल और उसी प्रकार से होंगी। उसमें इन्द्र या तीर्थकर कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकता। उत्तरकालीन जैन-ग्रन्थों में इस त्रैकालिक ज्ञान सम्बन्धी सर्वज्ञत्व की अवधारणा का मात्र विकास ही नहीं हुआ, वरन् उसको तार्किक-आधार पर सिद्ध करने का प्रयास भी किया गया है। यद्यपि बुद्ध ने महावीर की त्रिकालज्ञ सर्वज्ञता की धारणा का खण्डन करते हुए उसका उपहासात्मक-चित्रण भी किया और अपने सम्बन्ध में त्रिकालज्ञ सर्वज्ञता की इस धारणा का : निषेध भी किया था, लेकिन परवर्ती बौद्ध-साहित्य में बुद्ध को भी उसी अर्थ
SR No.004419
Book TitleJain Gyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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