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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-312 जैन ज्ञानमीमांसा-20 थोड़ा भिन्न है। नियमसार गाथा 159 में वे लिखते हैं कि व्यवहारनय से केवलज्ञानी सबको जानते और देखते हैं, किन्तु निश्चयनय से तो केवलज्ञानी अपनी आत्मा को ही जानते और देखते हैं। केवलज्ञान की दशा में आत्मा निरावरण और शुद्ध होता है, अतः सभी कुछ जो आत्मा में प्रतिबिम्बित होता है, केवलज्ञानी उसे जानता और देखता है। इसी अपेक्षा से यह कहा जाता है कि केवली सब कुछ जानता और देखता है। केवली सर्वद्रव्यों की सभी त्रैकालिक पर्यायों को जानता और देखता है - ऐसा एकान्ततः मानने पर अनेक विसंगतियां भी उत्पन्न होती हैं और जैनदर्शन पुरुषार्थवादी से नियतिवादी बन जाता है। यदि, केवली सभी द्रव्यों की त्रैकालिक पर्यायों को जानता है - ऐसा मानें, तो उसके ज्ञान की अपेक्षा से समग्र भविष्य भी नियत होगा, अतः उसमें किसी प्रकार के परिवर्तन की कोई सम्भावना नहीं रहेगी, अतः हमें नियतिवाद या क्रमबद्धपर्यायवाद मानना होगा, किन्तु आगमिक-दृष्टि से ऐसा नहीं है। भगवतीसूत्र में जब यह प्रश्न उठाया गया कि केवली क्या जानता है और क्या नहीं जानता है ? तो उसका उत्तर दिया गया - " केवली सिय जाणई सिय ण जाणई"। जैन-दर्शन की दृष्टि से भी कहें, तो जो 'अनादि है, केवली भी उसकी आदि/प्रारम्भ को नहीं जान सकता है। केवली से यदि प्रश्न पूछा जाए कि आत्मा कबसे है ? संसार कबसे है ? षद्रव्य कबसे है ? आत्मा कर्म से बद्ध कब और कैसे हुआ? जीवात्मा संसार में कबसे भव-भ्रमण कर रहा है ? किसी जीव का प्रथम भव कौनसा था ? तो केवली भी इनका उत्तर नहीं देकर मात्र यही कहेगा कि ये अनादिकाल से हैं। अनादि तथ्यों की आदि बताना - यह केवली के लिए भी सम्भव नहीं है, इसीलिए भगवतीसूत्र में कहा गया है- केवली भी कुछ जानता है, कुछ नहीं जानता है। केवली को सर्वज्ञ भी कहा जाता है। सर्वज्ञता की धारणा श्रमण और वैदिक - दोनों परम्पराओं की प्राचीन धारणा है। सर्वज्ञतावाद यह मानता है कि सर्वज्ञ देश और काल की सीमाओं से ऊपर उठकर कालातीत दृष्टि से सम्पन्न होता है और इस कारण उसे भूत के साथ-साथ भविष्य का भी पूर्वज्ञान होता है, लेकिन जो केवल ज्ञान है, उसमें सम्भावना, संयोग या अनियतता नहीं हो सकती,
SR No.004419
Book TitleJain Gyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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