________________ जैन धर्म एवं दर्शन-461 जैन ज्ञानमीमांसा -169 विचार प्रस्तुत करने का अधिकार मान्य करती है और यथासम्भव उससे लाभ भी उठाती है। दार्शनिक-क्षेत्र में जहाँ भारत स्याद्वाद का सर्जक है, वहीं वह राजनीतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातन्त्र का समर्थक भी है, अतः आज स्याद्वाद-सिद्वान्त का व्यावहारिक क्षेत्र में उपयोग करने का दायित्व भारतीय राजनीतिज्ञों पर है। इसी प्रकार, हमें यह भी समझना है कि राज्य-व्यवस्था का मूल लक्ष्य जनकल्याण को दृष्टि में रखते हुए विभिन्न राजनीतिक-विचारधाराओं के मध्य एक सांग संतुलन स्थापित करना है। आवश्यकता सैद्धांतिक-विवादों की नहीं, अपितु जनहित के संरक्षण एवं मानव की पाशविक-वृत्तियों के नियन्त्रण. की है। मनोविज्ञान और अनेकान्तवाद वस्तुतः, अनेकान्तवाद न केवल एक दार्शनिक-पद्धति है, अपितु वह मानवीय-व्यक्तित्व की बहुआयामिता को भी स्पष्ट करती है। जिस प्रकार वस्तुतत्त्व विभिन्न गुणधर्मों से युक्त होता है, उसी प्रकार से मानवव्यक्तित्व भी विविध विशेषताओं या विलक्षणताओं का पुंज है, उसके भी विविध आयाम हैं। प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व के भी विविध आयाम या पक्ष होते हैं, मात्र यही नहीं, उसमें परस्पर विरोधी गुण भी देखने को मिलते हैं। सामान्यतया, वासना व विवेक परस्पर विरोधी माने जाते हैं, किन्तु मानव-व्यक्तित्व में ये दोनों विरोधी गुण एक साथ उपस्थित हैं। मनुष्य में एक ओर अनेकानेक वासनाएं, इच्छाएं और आकांक्षाएं रही हई होती हैं, तो दूसरी ओर उसमें विवेक का तत्त्व भी होता है, जो उसकी वासनाओं, आकांक्षाओं और इच्छाओं पर नियंत्रण रखता है। यदि मानव- व्यक्तित्व को समझना है, तो हमें उसके वासनात्मक-पहलू और आदर्शात्मक-पहलू (विवेक) दोनों को ही देखना होगा। मनुष्य में न केवल वासना और विवेक के परस्पर विरोधी गुण पाये जाते हैं, अपितु उसमें अनेक दूसरे भी परस्पर विरोधी गुण देखे जाते हैं, उदाहरणार्थ- विद्वत्ता या मूर्खता को लें। प्रत्येक व्यक्ति में विद्वत्ता में मूर्खता और मूर्खता में विद्वत्ता समाहित होती है। कोई भी व्यक्ति समग्रतः विद्वान् या समग्रतः मूर्ख नहीं होता है। मूर्ख में भी कहीं-न-कहीं विद्वत्ता और विद्वान् में भी कहीं-न-कहीं मूर्खता छिपी