________________ जैन धर्म एवं दर्शन-406 जैन ज्ञानमीमांसा-114 निकाले गए निष्कर्षों एवं कथनों को समष्टि के अर्थ में सत्य नहीं माना जाना चाहिए, साथ ही, व्यवहारनय कथन के शब्दार्थ पर न जाकर वक्ता की भावना या लोकपरम्परा (अभिसमय) को प्रमुखता देता है। व्यवहार-भाषा के अनेक उदाहरण हैं। जब हम कहते हैं कि घी के घड़े में लड्डू रखे हैं - यहाँ घी के घड़े का अर्थ ठीक वैसा नहीं है, जैसा कि मिट्टी के घड़े का अर्थ है। यहाँ घी के घड़े का तात्पर्य वह घड़ा है, जिसमें पहले घी रखा जाता था। ऋजुसूत्र-नय - ऋजुसूत्रनय को मुख्यतः पर्यायार्थिक-दृष्टिकोण का प्रतिपादक कहा जाता है और उसे बौद्धदर्शन का समर्थक बताया जाता है। ऋजुसूत्रनय वर्तमान स्थितियों को दृष्टि में रखकर कोई प्रकथन ' करता है। उदाहरण के लिए - 'भारतीय व्यापारी प्रामाणिक नहीं हैं - यह कथन केवल वर्तमान सन्दर्भ में ही सत्य हो सकता है। इस कथन के आधार पर हम भूतकालीन और भविष्यकालीन भारतीय व्यापारियों के चरित्र का निर्धारण नहीं कर सकते। ऋजुसूत्रनय हमें यह बताता है कि उसके आधार पर कथित कोई भी वाक्य अपने तात्कालिक-सन्दर्भ में ही सत्य होता है, अन्यकालिक सन्दर्भो में नहीं। जो वाक्य जिस कालिक-सन्दर्भ में कहा गया है, उसके वाक्यार्थ का निश्चय उसी कालिक-सन्दर्भ में होना चाहिए। शब्द-नय - नय-सिद्धान्त के उपर्युक्त चार नय मुख्यतः शब्द के वाच्य-विषय (अर्थ) से सम्बन्धित हैं, जबकि शेष तीन नयों का सम्बन्ध शब्द के वाच्यार्थ (Meaning) से है। शब्दनय यह बताता है कि शब्दों का वाच्यार्थ उनकी क्रिया या विभक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकता है, उदाहरण के लिए - ' बनारस भारत का प्रसिद्ध नगर था' और 'बनारस भारत का प्रसिद्ध नगर है - इन दोनों वाक्यों में 'बनारस' शब्द का वाच्यार्थ भिन्न-भिन्न है। एक भूतकालीन बनारस की बात कहता है, तो दूसरा वर्तमानकालीन। इसी प्रकार, 'कृष्ण ने मारा' - इसमें कृष्ण का वाच्यार्थ कृष्ण नामक वह व्यक्ति है, जिसने किसी को मारने की क्रिया सम्पन्न की है, जबकि ' कृष्ण को मारा' - इसमें कृष्ण का वाच्यार्थ वह व्यक्ति है, जो किसी के द्वारा मारा गया है। शब्दनय हमें यह बताता है