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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-542 जैन- आचार मीमांसा-74 तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि भारतीय-आचारदर्शन आत्मसंयम के प्रत्यय को स्वीकार करते हैं। जैन-दर्शन नैतिक-पूर्णता के लिए संयम को आवश्यक मानता है। उसके त्रिविधि साधनापथ में सम्यक् आचरण का भी वही मूल्य है, जो विवेक और भावना का है। दशवैकालिकसूत्र में धर्म को अहिंसा, संयम और तपमय बताया है। अहिंसा और तप भी संयम के ही पोषक हैं इस और इस अर्थ में संयम एक महत्वपूर्ण घटक है। भिक्षु-जीवन और गृहस्थ-जीवन के आचरण में संयम या अनुशासन का सर्वत्र महत्व दिया गया है। महावीर के सम्पूर्ण उपदेश का सार असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति है। इस प्रकार, बबिट का यह दृष्टिकोण जैन-दर्शन के अति निकट है। बबिट का यह कहना भी कि वर्तमान युग के संकट का कारण संयमात्मक मूल्यों का हास है, जैन-दर्शन को स्वीकार है। वस्तुतः, आत्मसंयम और अनुशासन आज के युग की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। ___ न केवल जैन-दर्शन में, वरन् बौद्ध और वैदिक-दर्शनों में भी संयम और अनुशासन को आवश्यक माना गया है। भारतीय नैतिक-चिन्तन में संयम का प्रत्यय सभी आचारदर्शनों में और सभी कालों में बराबर स्वीकृत रहा है। संयममय जीवन भारतीय संस्कृति की विशेषता रहा है, इसलिए बबिट का यह विचार भारतीय-चिन्तन के लिए कोई नई बात नहीं है। समकालीन मानवतावादी-विचारकों के उपर्युक्त तीनों सिद्धान्त यद्यपि भारतीय चिन्तन में स्वीकृत हैं, तथापि भारतीय-विचारकों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने इन तीनों को समवेत रूप से स्वीकार किया है। जैन-दर्शन में सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र के रूप में; बौद्ध-दर्शन में शील, समाधि और प्रज्ञा के रूप में तथा गीता में श्रद्धा, ज्ञान और कर्म के रूप में प्रकारान्तर से इन्हें स्वीकार किया गया है। यद्यपि गीता की श्रद्धा को आत्मचेतनता नहीं कहा जा सकता, तथापि गीता में अप्रमाद के रूप में आत्मचेतनता स्वीकृत है। बौद्ध-दर्शन के इस त्रिविध साधनापथ में समाधि आत्मचेतनता का, प्रज्ञा विवेक का और शील संयम का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी प्रकार, जैन-दर्शन में सम्यक् दर्शन आत्मचेतनता का, सम्यक्ज्ञान विवेक का और सम्यक्चारित्र संयम का प्रतिनिधित्व करते हैं।
SR No.004418
Book TitleJain Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages288
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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