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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-533 जैन - आचार मीमांसा-65 पर बल देता है। जिस प्रकार पूर्णतावाद अपनी क्षमताओं को पहचानकर उनके पूर्ण प्रकटन तक पुरुषार्थी बना रहना आवश्यक मानता है, उसी प्रकार जैन-दर्शन भी आत्मा के स्वस्वरूप को जानकर उसकी पूर्णता के लिए सतत परिश्रम और जागरूकता को आवश्यक मानता है। जैन-दर्शन भी पूर्णतावाद के समान सामाजिकता को नैतिकता का अन्तिम तत्त्व नहीं मानता और समाज से भी ऊपर उठने की धारणा को स्वीकार करता है। जैन-दर्शन का नैतिक-साध्य मोक्ष है, लेकिन मोक्ष पूर्णता या आत्मसाक्षात्कार की अवस्था ही है। जैन-दार्शनिकों ने मोक्ष की अवस्था में अनन्तचतुष्टय की उपलब्धि को स्वीकार कर यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जैन-दर्शन पूर्णता के रूप में जीवन के सभी सद्पक्षों का पूर्ण विकास चाहता है। वस्तुतः, जैन-दर्शन के मोक्ष की यह धारणा पूर्णतावाद या आत्मसाक्षात्कार के सिद्धान्त से दूर नहीं है। जैन-दर्शन की मोक्ष की यह धारणा पूर्णतावाद या आत्मसाक्षात्कार के सिद्धान्त से दूर नहीं है। जैन-दर्शन का मोक्ष अन्य कुछ नहीं, मात्र चैत्त-जीवन के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं संकल्पात्मक पक्षों की पूर्ण अभिव्यक्ति है। वैदिक परम्परा में भी आत्मपूर्णता, आत्मलाभ या आत्मासाक्षात्कार को नैतिक-जीवन का साध्य माना गया है। बृहदारण्यक-उपनिषद् में कहा गया है कि आत्मा के लिए ही सबकुछ पिय होता है। आचार्य शंकर उपदेशसहस्री में लिखते हैं कि आत्मलाभ से बड़ा अन्य कोई लाभ नहीं है। - वैदिक-परम्परा में बुद्धि के द्वारा वासनाओं के निराकरण के तथ्य को स्वीकार किया गया है। मनुस्मृति एवं गीता में वर्णधर्म या स्वधर्म के जो प्रत्यय हैं, वे भी पूर्णतावादी विचारक ड्रडले के 'स्वस्थान और उसके कर्त्तव्य' के सिद्धान्तों के बहुत अधिक निकट हैं। गीता पूर्णतावाद के समान ही कर्ममार्ग, ज्ञानमार्ग एवं भक्तिमार्ग के समन्वय को स्वीकार करती है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के पुरुषार्थों में काम और अर्थ को स्वीकार कर वैदिक-परम्परा यह स्पष्ट रूप से बता देती है कि जीवन में भावनात्मक पक्ष का भी अपना मूल्य है। भावना को जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। नैतिक-साध्य भावनाओं का निराकरण नहीं, वरन् . उनका परिष्कार है।
SR No.004418
Book TitleJain Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages288
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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