________________ जैन धर्म एवं दर्शन-506 जैन - आचार मीमांसा-38 है, अतः सहानुभूति के आधार पर नैतिकता को पूर्णतया निर्भर नहीं किया. जा सकता है। (ई) नैतिक अन्तरात्मवाद और जैनदर्शन- नैतिक-अन्तरात्मवाद के प्रवर्तक जोसेफ बटलर हैं। इनके अनुसार, सदगुण वह है, जो मानव प्रकृति के अनुरूप हो और दुर्गुण वह है, जो मानवप्रकृति के विपरीत हो। दूसरे शब्दों में, सद्गुण मानवप्रकृति के नियमों का अनुवर्तन है और दुर्गुण इन नियमों का उल्लंघन है। मानवप्रकृति में कर्म की संवादिता ही सद्गुण है और कर्म की विसंवादिता दुर्गुण है, लेकिन बटलर इस मानवप्रकृति को मानव की यथार्थ प्रकृति नहीं मानते। यदि हम मानवप्रकृति का अर्थ मानव की यथार्थ प्रकृति करेंगे, तो वह जो करता है, उस सबको शुभ समझना होगा, अतः हमें यहाँ यह स्पष्ट रूप से जान लेना चाहिए कि बटलर के अनुसार मानवप्रकृति का अर्थ मानव की यथार्थ प्रकृति नहीं, वरन् आदर्श प्रकृति है। मानव की आदर्श प्रकृति के अनुरूप जो कर्म होगा, वह शुभ और उसके विपरीत जो कर्म होगा, वह अशुभ माना जाएगा। बटलर के इन दृष्टिकोण का समर्थन जैन-परम्परा भी करती है। आत्मा की जो विभाव-अवस्थाएँ हैं या जो विसंवादी-अवस्थाएँ हैं, वह अशुभ या अशुद्ध अवस्था है। जो कर्म आत्मा को स्वभावदशा की ओर ले जाते हैं, वे ही शुभ है, या शुद्ध या शुद्ध अवस्था है। जो कर्म आत्मा की जो स्वभाव अवस्था या संवादी-अवस्था है, वह शुभ या शुद्ध अवस्था है। जो कर्म आत्मा को स्वभावदशा की ओर ले जाते हैं, वे शुभ हैं। बटलर ने मानवप्रकृति के चार तत्व माने हैं- (1) वासना, (2) स्वप्रेम, (3) परहित और (4) अन्तरात्मा। जैन-दर्शन के अनुसार मानवप्रकृति के दो ही तत्व माने जा सकते हैं- (1) वासना या कषायात्मा और (2) उपयोग या ज्ञानात्मा। बटलर के अनुसार, इन सबमें अन्तरात्मा ही नैतिक-जीवन का अन्तिम निर्णायक-तत्त्व है। बटलर ने इसको प्रशंसा और निन्दा करने वाली बुद्धि, नैतिक-बुद्धि, नैतिक-इन्द्रिय और ईश्वरीय–बुद्धि भी कहा है। यही हमारी अन्तरात्मा का स्थायी भाव और हृदय का प्रत्यक्षीकरण भी है। बटलर के अनुसार, अन्तरात्मा के दो पहलू हैं- (1) शुद्ध ज्ञान और (2) सर्वाधिकारिता। सर्वाधिकारी होने के कारण वह