________________ जैन धर्म एवं दर्शन-740 जैन - आचार मीमांसा -272 अस्वीकार भी नहीं किया जा सकता है। अन्त में, हम कह सकते हैं कि भारतीय जीवन-दर्शन की दृष्टि पूर्णतया सामाजिक और लोकमंगल के लिए प्रयत्नशील बने रहने की है। उसकी एकमात्र मंगल-कामना है सर्वेऽत्र सुखिनः सन्तु / सर्वे सन्तु निरामयाः / सर्वे भद्राणि पश्यन्तु / मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् / सामाजिक चेतना के सन्दर्भ1. ऋग्वेद 10/191/2 2. वही, 10/192/3-4 3. तैत्तिरीय आरण्यक 8/2 4. ईश 6 5. ईश 1 6. गीता 6/32 7. गीता 12/4 8. वही, 18/2 9. वही, 6/1 10. वही, 3/25 11. श्रीमद्भागवत 7/14/8 12. प्रश्नव्याकरण 1/1/21-22 13. सामायिक-पाठ (अमितगति) 14. बोधिचर्यावतार 8/134-135 15. तत्त्वार्थ 5/21 16. लेखक इस व्याख्या के लिए महेन्द्र मुनिजी का आभारी है। . 17. विवेकचूड़ामणि 318 18. वही, 559 19. बोधिचर्यावतार 8/105, 108 20. वही, 3/21 21. आत्मज्ञान और विज्ञान, पृ. 71 22. बोधिचर्यावतार 3/11