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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-702 जैन- आचार मीमांसा -234 जानबूझकर चोरी करना, 15. सचित्त पृथ्वी पर बैठना, सोना अथवा खड़े होना, 16. सचित्त जल से सस्निग्ध और सचित्त रज वाली पृथ्वी, शिला अथवा धुन लगी हुई लकड़ी आदि पर बैठना, सोना या कायोत्सर्ग करना, 17. प्राणी, बीज, हरित वनस्पति, कीड़ी, नगर, काई, फफूंदी, पानी, कीचड़ और मकड़ी के जालों वाले स्थान पर बैठना, सोना, 18. जानबूझकर मूल, कंद, त्वचा (छाल), प्रवाल, पुष्प, फल, हरित आदि का सेवन करना, 19. एक वर्ष में दस बार से अधिक पानी का प्रवाह लांघना, 20. एक वर्ष में दस बार मायाचार (कपट) करना, 21. सचित्त जल से गीले हाथ द्वारा अशनादि लेना। __ अनाचीर्ण - जो कृत्य श्रमण अथवा श्रमणियों के आचरण के योग्य नहीं है, वे अनाचीर्ण कहे जाते है। जैन-परम्परा में ऐसे अनाचीर्ण बावन माने गये है। दसवैकालिकसूत्र के तीसरे अध्याय में इनका सविस्तार . विवेचन है। संक्षेप में, बावन अनाचीर्ण ये है - 1. औद्देशिक - श्रमणों के निमित्त बनाए गए भोजन, वस्त्र, पानी, मकान आदि किसी भी पदार्थ का ग्रहण करना। , - 2. नित्यपिण्ड (नियाग) - एक ही घर से नित्य एवं आमन्त्रित आहार / ग्रहण करना। ___ 3. अभ्याहृत - भिक्षुक के निवास स्थान पर गृहस्थ के द्वारा लाकर दिया गया आहार ग्रहण करना। 4. क्रीत - मुनि के लिए खरीदी गई वस्तु को ग्रहण करना। 5. त्रिभक्त - तीन बार भोजन करना। एक समय भोजन करना श्रमण-जीवन का उत्तम आर्दश है, दो बार भोजन करना मध्यममार्ग है, लेकिन दो बार से अधिक भोजन करना अनाचीर्ण है। कुछ आचार्यों ने इसका अर्थ रात्रि भोजन-निषेध माना है, लेकिन रात्रि भोजन-निषेध को तो छठवें महाव्रत के रूप में पहले ही वर्जित मान लिया गया है, अतः यहाँ विभक्त का अर्थ तीन बार भोजन का निषेध ही समझना चाहिए। 6. स्थान-स्थान करना। (मूलाचार में स्नान को मुनि का मूल गुण बताया गया है) 7. गंध - इत्र, चंदन आदि, सुवासित. पदार्थो का उपयोग करना।
SR No.004418
Book TitleJain Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages288
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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