________________ जैन धर्म एवं दर्शन-684 जैन- आचार मीमांसा-216 ययनसूत्र में ब्रह्मचर्य की रक्षा के निमित्त निम्न बातों से बचने का निर्देश किया गया है - 1. स्त्री, पशु और नपुंसक जिस स्थान पर रहते हों, भिक्षु वहाँ न ठहरे, 2. भिक्षु श्रृंगार-रसोत्पादक स्त्री-कथा न करे, 3. भिक्षु स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे (उनका स्पर्श भी न करे), 4. स्त्रियों के अंगोपांग विषय-बुद्धि से न देखे, 5. आसपास से आते हुए स्त्रियों के कुंजन, गायन, हास्य, क्रन्दित शब्द, रूदन और विरह से उत्पन्न विलाप को न सुने, 6. गृहस्थावस्था में भोगे हुए भोगों (रति-क्रीड़ाओं) का स्मरण न करे, 7. पुष्टिकारक (गरिष्ठ) भोजन न करे, 8. मर्यादा से अधिक भोजन न करे, 9. शरीर का श्रृंगार न करे, 10. इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति न रखे। ___ मूलाचार में अब्रह्मचर्य के दस कारणों का उल्लेख है - 1. विपुलाहार, 2. शरीर श्रृंगार, 3. गन्ध माल्य धारण, 4. गाना-बजाना, 5. उच्च शय्या, 6. स्त्री-संसर्ग, 7. इन्द्रियों के विषयों का सेवन, 8. पूर्वरति स्मरण, 9. काम भोग की सामग्री का संग्रह और 10. स्त्री सेवा / तत्त्वार्थसूत्र में इनमें से पांच का ही उल्लेख है। वस्तुतः उपर्युक्त प्रसंगों का उल्लेख ब्रह्मचर्य की रक्षा के निमित्त ही किया गया है। सामान्य नियम तो यह है कि भिक्षु को जहाँ भी अपने ब्रह्मचर्य-महाव्रत के खंडन की संभावना प्रतीत हो, उन सभी स्थानों का उसे परित्याग कर देना चाहिए। जैन आचार-दर्शन में श्रमण एवं श्रमणी के पारस्परिक-व्यवहार के नियमों का प्रतिपादन करने भी प्रमुख रूप से यही दृष्टिकोण रहा है कि साधक का ब्रह्मचर्यव्रत अक्षुण्ण रह सके। श्रमण और श्रमणी के पारस्परिक-व्यवहार के संर्दभ में ये नियम उल्लेखनीय है- 1. उपाश्रय अथवा मार्ग में अकेला मुनि किसी श्रमणी अथवा स्त्री के साथ न बैठे, न खड़ा रहे और न उनसे कोई बात-चीत ही करे, 2. अकेला श्रमण दीन में भी किसी अकेली साध्वी या स्त्री को अपने आवासस्थान पर न आने दे, 3. यदि श्रमण-समुदाय के पास ज्ञान प्राप्ति के निमित्त से कोई साध्वी या स्त्री आई हो, तो किसी प्रौढ़ गृहस्थ-उपासक एवं उपासिका की उपस्थिति में ही उसे ज्ञानार्जन कराए, 4. प्रवचन-काल के अतीरिक्त श्रमण अपने आवासस्थान पर साध्वीयों एवं स्त्रीयों को ठहरने न दे, 5. श्रमण एक दिन की बालिका का भी स्पर्श न करे (साध्वीयों के संदर्भ में यह निषेध बालक अथवा पुरूष के लिए समझना चाहिए), 6. जहाँ