________________ जैन धर्म एवं दर्शन-631 जैन - आचार मीमांसा -163 है कि जो भी दानादि कर्म करना चाहिए, उन्हें श्रद्धापूर्वक ही करना चाहिए, अश्रद्धापूर्वक नहीं। इस प्रकार, हम देखते हैं कि जैन, बौद्ध और वैदिक-परम्पराएँ आचरण के पूर्व श्रद्धा को स्थान देती हैं। वस्तुतः, श्रद्धा आचरण के अन्तस् में निहित एक ऐसा तत्त्व है, जो कर्म को उचितता प्रदान करता है। नैतिक-जीवन के क्षेत्र में वह एक आन्तरिक अंकुश के रूप में कार्य करती है और इसलिए वह कर्म से प्रथम है। सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की पूर्वापरता- जैन- विचारकों ने चारित्र को ज्ञान के बाद ही रखा है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि जो जीव और अजीव के स्वरूप को नहीं जानता, ऐसा जीव और अजीव के विषय में अज्ञानी साधक क्या धर्म (संयम) का आचरण करेगा ? 31 उत्तराध्ययनसूत्र में भी यही कहा है कि सम्यग्ज्ञान के अभाव में सदाचरणं नहीं होता। 32 इस प्रकार, जैन-दर्शन ज्ञान को चारित्र के पूर्व मानता है। जैन-दार्शनिक यह तो स्वीकार करते हैं कि सम्यक् आचरण के पूर्व सस्यक्ज्ञान का होना आवश्यक है, फिर भी वे यह स्वीकार नहीं करते हैं कि अकेला ज्ञान ही मुक्ति का साधन है। ज्ञान आचरण का पूर्ववर्ती अवश्य है, यह भी स्वीकार किया गया है कि ज्ञान के अभाव में चारित्र सम्यक् नहीं हो सकता, लेकिन यह प्रश्न विचारणीय है कि क्या ज्ञान ही मोक्ष का मूल हेतु है ? साधन-त्य में ज्ञान का स्थान- जैनाचार्य अमृतचन्द्रसूरि ज्ञान की चारित्र से पूर्वता को सिद्ध करते हुए एक चरम सीमा स्पर्श कर लेते हैं। वे अपनी समयसार टीका में लिखते हैं कि ज्ञान ही मोक्ष का हेतु है, क्योंकि ज्ञान का अभाव होने से अज्ञानियों में अंतरंग व्रत, नियम, सदाचरण और तपस्या आदि वं उपस्थिति होते हुए भी मोक्ष का अभाव है, क्योंकि अज्ञान तो बन्ध का हेतु है, जबकि ज्ञानी में ज्ञान का सद्भाव होने से बाह्य-व्रत, नियम, सदाचरण, तप आदि की अनुपस्थिति होने पर भी मोक्ष का सद्भाव है। आचार्य शंकर भी यह मानते हैं कि एक ही कार्य ज्ञान के अभाव में बन्धन का हेतु और ज्ञान की उपस्थिति में मोक्ष का हेतु होता है। इससे यही सिद्ध होता है कि कर्म नहीं, ज्ञान ही मोक्ष का हेतु है। आचार्य अमृतचन्द्र भी ज्ञान को त्रिविध साधनों में प्रमुख मानते हैं। उनकी दृष्टि में सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र भी ज्ञान के ही रूप हैं / वे लिखते हैं कि मोक्ष के कारण सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र हैं / जीवादि तत्त्वों के यथार्थ श्रद्धान रूप से तो जो ज्ञान है, वह तो सम्यग्दर्शन है और उनका ज्ञान-स्वभाव से -ज्ञान होना सम्यग्ज्ञान है तथा रागादि के त्याग-स्वभाव से ज्ञान का होना सम्यक्चारित्र है। इस प्रकार, ज्ञान ही परमार्थतः मोक्ष का कारण है। यहां पर आचार्य दर्शन और