________________ जैन धर्म एवं दर्शन-566 जैन- आचार मीमांसा-98 सामाजिक और आध्यातिम्क-मूल्यों को अर्जित करने के साधन होने में है। सम्पत्ति स्वतः वांछनीय नहीं है, बल्कि अन्य शुभों को अर्जित करने के साट न होने में है। सम्पत्ति एक साधनमूल्य है साध्य-मूल्य नहीं। शारीरिक-मूल्य भी वैयक्तिक जीवन मूल्यों के साधक हैं। स्वास्थ्य और शक्ति से युक्त परिपुष्ट शरीर को व्यक्ति अच्छे जीवन के अन्य मूल्यों के अनुसरण में प्रयुक्त कर सकता है। क्रीड़ा और मनोरंजन उच्चतर मूल्यों के अनुसरण के लिए हमें शारीरिक एवं मानसिक-दृष्टि से स्वस्थ रखते हैं। . . . 2. सामाजिक-मूल्य- सामाजिक मूल्यों के अन्तर्गत साहचर्य तथा चरित्र के मूल्य आते हैं। आज के मानवतावादी युग में तो इन मूल्यों का महत्व अत्यन्त व्यापक हो गया है। यद्यपि ये दोनों मूल्य किसी अन्य साध्य के साधन-स्वरूप प्रयुक्त होते हैं, परन्तु कुछ महान् पुरुषों ने सच्चरित्रता एवं समाजसेवा को जीवन के परम लक्ष्य के रूप में ग्रहण किया है। मनुष्य समाज का अंग है। एक असीम आत्मा का साक्षात्कार समाज के साथ अपनी वैयक्तिकता का एकाकार करके ही किया जा सकता है। 3. आध्यात्मिक-मूल्य- मूल्यों के इस वर्ग के अन्तर्गत बौद्धिक, सौन्दर्यात्मक एवं धार्मिक-तीन प्रकार के मूल्य आते हैं। ये तीनों मूल्य मूलतः साध्यमूल्य हैं। ये आत्मा की सर्वश्रेष्ठ या परम आदर्श प्रकृति, अर्थात् सत्यं, शिवं और सुन्दरं की अभिरुचियों को तृप्ति प्रदान करते हैं तथा जैविक एवं सामाजिक-मूल्यों से श्रेष्ठ कोटि के हैं। तुलनात्मक दृष्टि से भारतीय दर्शनों के पुरुषार्थचतुष्टय में अर्थ और काम जैविक मूल्य हैं और धर्म और मोक्ष अतिजैविक-मूल्य हैं। अरबन ने जैविक-मूल्यों में आर्थिक, शारीरिक और मनोरंजनात्मक-मूल्य कामपुरुषार्थ के समान हैं। अरबन के द्वारा अतिजैविक-मूल्यों में सामाजिक और आध्यात्मिक-मूल्य माने गए हैं। उनमें सामाजिक मूल्य धर्मपुरुषार्थ से और आध्यात्मिक-मूल्य मोक्षपुरुषार्थ से सम्बन्धित हैं। जिस प्रकार अरबन ने मूल्यों में सबसे नीचे आर्थिक-मूल्य माने हैं, उसी प्रकार भारतीय-दर्शन में भी अर्थपुरुषार्थ को तारतम्य की दृष्टि से सबसे नीचे माना है। जिस प्रकार अरबन के दर्शन में शारीरिक और मनोरंजन सम्बन्धी मूल्यों का स्थान आर्थिक-मूल्यों से ऊपर, लेकिन सामाजिक-मूल्यों से नीचे है, उसी