________________ काम काम जैन धर्म एवं दर्शन-567 जैन- आचार मीमांसा-99 प्रकार भारतीय-दर्शन में भी मोक्ष को सर्वोच्च पुरुषार्थ माना गया है। अरबन के दृष्टिकोण की भारतीय-चिन्तन से कितनी अधिक निकटता है, इसे निम्न तालिका से समझाा जा सकता हैपाश्चात्य-दृष्टिकोण भारतय दृष्टिकोण जैन-दृष्टिकोण मूल्य पुरुषार्थ जैविक-मूल्य 1. आर्थक-मूल्य अर्थपुरुषार्थ अर्थ 2. शारीरिक-मूल्य कामपुरुषार्थ 3. मनोरंजनात्मक-मूल्य कामपुरूषार्थ सामाजिक-मूल्य 4. संगठनात्मक-मूल्य धर्मपुरुषार्थ व्यवहारधर्म 5. चारित्रिक-मूल्य धर्मपुरुषार्थ निश्चयधर्म आध्यात्मिक-मूल्य- मोक्षपुरुषार्थ 6. कलात्मक . आनन्द (संकल्प) अनन्त सुख एवं शक्ति 7. बौद्धिक चित् (संकल्प) अनन्तज्ञान 8. धार्मिक सत् (भाव) अनन्त दर्शन ___इस प्रकार, अपनी मूल्य–विवेचना में प्राच्य और पाश्चात्य-विचारक अन्त में एक ही निष्कर्ष पर आ जाते हैं और वह निष्कर्ष यह है कि आध्यात्मिक-मूल्य या आत्मपूर्णता ही सर्वोच्च मूल्य है एवं वही नैतिक-जीवन का साध्य है। यद्यपि भारतीय-दर्शन में स्वीकृत सभी जीवन-मूल्य और पाश्चात्य-आचारदर्शन में स्वीकृत विभिन्न नैतिक-प्रतिमान जैन-आचारदर्शन में स्वीकृत रहे हैं, तथापि इसका यह अर्थ नहीं है कि जैन-दर्शन के पास नैतिक प्रतिमान के किसी निश्चित सिद्धान्त का अभाव है। वस्तुतः जैन-दर्शन की अनेकान्तवादी-दृष्टि ही इसके मूल में है। जिस प्रकार जैन-दर्शन तत्वमीमांसा और ज्ञानमीमांसा के क्षेत्र में विभिन्न परस्पर विरोधी दार्शनिक विचारों को सापेक्ष रूप से स्वीकार करके उनमें समन्वय करता है, उसी प्रकार जैन-आचारदर्शन भी विभिन्न नैतिक-प्रतिमानों को सापेक्षिक रूप से स्वीकार करके उनमें समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न करता है। . . यद्यपि जैन आचारदर्शन में सापेक्ष दृष्टि से नैतिक-मानक सम्बन्धी