________________ जैन धर्म एवं दर्शन-565 जैन- आचार मीमांसा-97 ही नहीं रहती है, वही परम मूल्य है। मोक्ष में कोई अपूर्ण इच्छा नहीं रहती है, अतः वह परम मूल्य है। ____3. सभी साधन किसी साध्य के लिए होते हैं और साध्य की उपस्थिति अपूर्णता की सूचक है। मोक्ष की प्राप्ति के पश्चात् कोई साध्य नहीं रहता, इसलिए वह परम मूल्य है। यदि हम किसी अन्य मूल्य को स्वीकार करेंगे, तो वह साधन-मूल्य ही होगा और साधन-मूल्य को परम मूल्य मानने पर नैतिकता में सर्वालौकिकता एवं वस्तुनिष्ठता समाप्त हो जाएगी। ___4. मोक्ष अक्षर एवं अमृतप है, अतः स्थायी मूल्यों में वह सर्वोच्च मूल्य है। 5. मोक्ष आन्तरिक-प्रकृति या स्वस्वभाव है। वही एकमात्र परम मूल्य हो सकता है, क्योंकि उसमें हमारी प्रकृति के सभी पक्ष अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति एवं पूर्ण समन्वय की अवस्था में होते हैं। भारतीय और पाश्चात्य मूल्य-सिद्धान्तों की तुलना अरबन और एबरेट ने जीवन के विभिन्न मूल्यों की उच्चता एवं निम्नता का जो क्रम निर्धारित किया है, वह भी भारतीय –चिन्तन से काफी साम्य रखता है। अरबन ने मूल्यों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है मूल्य जैविक अतिजैविक सामाजिक आध्यात्मिक / / सामा आर्थिक शारीरिक मनोविनोद संगठनात्मक (चारित्रिक) बौद्धिक कलात्मक एवं धार्मिक -- अरबन ने सबसे पहले मूल्यों को दो भागों में बाँटा है- (1) जैविक और (2) अति जैविक / अतिजैविक-मूल्य भी सामाजिक और आध्यात्मिक-ऐसे दो प्रकार के हैं। इस प्रकार मूल्यों के तीन वर्ग बन जाते हैं.... 1. जैविक-मूल्य- शारीरिक, आर्थिक और मनोरंजन के मूल्य जैविकमूल्य हैं। आर्थिक-मूल्य मौलिक रूप से साधन-मूल्य हैं, साध्य नहीं। आर्थिक शुभ स्वतः मूल्यवान् नहीं हैं, उनका मूल्य केवल शारीरिक, .