________________ द्रोण, पादलिप्तसूरि, शीलांक रचित प्राकृत शब्द कोशो के सम्बन्ध में आज विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। प्राकृत के कोशों में विजयराजेन्द्रसूरिकृत 'अभिधानराजेन्द्रकोश', शेठ हरगोविन्ददासकृत ‘पाइयसद्दमहण्णव', मुनिरत्नचन्द्रकृत अर्धमागधीकोश', पाइयसद्दमहण्णव आधारित के. आर. चन्द्रा का प्राकृत हिन्दी कोश The Student's English-Paiya Dictionary आदि ही प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त प्राकृत शब्द रूपों को लेकर जैन विश्व भारती संस्थान से आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञजी के निर्देशन में तैयार निम्नकोश ग्रन्थ भी महत्त्वपूर्ण है- 1. आगमशब्दकोश, 2. देशीशब्दकोश, 3. निरूक्तकोश, 4. एकार्थककोश, 5. जा आगम वनस्पतिकोश 6. जै आगम प्राणीकोश 7. श्री भिक्षु आगमकोश भाग 1 एवं भाग 2 आदि। प्राकृत नाटक यहाँ यह ज्ञातव्य है कि प्राचीन नाटक और सट्टक प्राय: संस्कृत भाषा की रचनाएँ माने जाते है। किन्तु संस्कृत नाटकों में प्राय: बहुल अंश प्राकृत का ही होता है, अत: मुख्यतः प्राकृतों की होने से उन्हें प्राकृत भाषा का भी माना जा सकता है। ये नाटक भी जैन एवं अजैन दोनों परम्पराओं में लिखे गये है। कुछ नाटक ऐसे भी हैं, जो मात्र प्राकृत भाषा में रचित हैं, और सट्टक के रूप में जाने जाते है। यथाकप्पूरमंजी, विलासवइ, चंदलेहा, आनन्दसुंदरी, सिंगारमंजरी आदि / जैन नाटककारों में दिगम्बर हस्तिमल प्रसिद्ध है। इनके निम्न नाटक उपलब्ध है - अंजना पवनंजय, मैथिलीकल्याण, विक्रान्तकौरव, सुलोचना और सुभद्राहरण। श्वेताम्बरों में आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र ने जहाँ एक और संस्कृत में नाटय दर्पण नामक ग्रन्थ लिखा, वही प्राकृत संस्कृत मिश्रित भाषा में अनेक नाटकों की भी रचना की यथा- कौमुदीमित्रानन्द, नतविलास, यादवाभ्युदय, रधुविलास, राधषाभ्युदय, वनमाला (नाटिका), सत्यहरिशचन्द्र, इसके अतिरिक्त अजैन लेखको द्वारा रचित नाटकों, सट्टको और विधी आदि में प्राकृत के अंश मौजूद है। [21]