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________________ ज्योतिष यद्यपि चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति प्राकृत भाषा में रचित ज्योतिष सम्बन्धी प्रमुख आगम ग्रन्थ है, किन्तु इनके अतिरिक्त भी जैन परम्परा में अनेक ज्योतिष सम्बन्धी ग्रन्थ प्राकृत भाषा में भी रचित है यथा- गणिविज्ज, अंगविज्ज, जेइसकरंडक (ज्योतिषकरण्डक प्रकीर्णक), जेतिस्सार, विवाहमण्डल, लग्गसुद्धि, दिणसुद्धि, गणहरहोस, जेइसदार, जेइसचक्कवियार, जेइस्सहीर आदि। इस प्रकार हम देखते हैं, कि जैनाचार्यो ने प्राकृत भाषा में विपुल ग्रन्थों का सर्जन किया था। संस्कृत भाषा में तो उनके अनेको ज्योतिष सम्बन्धी ग्रन्थ है ही। 'आयनाणतिलय' नामक फलित ज्योतिष का जैन आचार्य वोसरि का भी एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्राप्त होता है। निमित्त शास्त्र निमित्त शास्त्र भी जैनाचार्यो का प्रिय विषय रहा है। जयपायड इस विषय की प्राकृत भाषा की एक प्रसिद्ध रचना है। इसके अतिरिक्त निमित्तपाहुड, जेणीपाहुड, रिठ्ठसम्मुच्चय, साणकय (श्वानकृत), छायादार,, नाडीदार, उवस्सुइदार, निमित्तदार, रिठ्ठदार, पिपीलियानाण, करलक्खण छींकवियार आदि इस विषय की प्राकृत कृतियाँ है। इस प्रकार शिल्पशास्त्र में ठक्करफेरूकृत वत्थुसारपयरण आदि ग्रन्थ भी प्राकृत में उपलब्ध हैं। प्राकृत आगम साहित्य में भी जैन खगोल, भूगोल, गणित, चिकित्साशास्त्र, प्राणीविज्ञान आदि से सम्बन्धित विषय वस्तु प्राकृत भाषा में उपलब्ध है। आज जैनाचार्यो द्वारा प्राकृत भाषा में रचित अनेक ग्रन्थ अनुपलब्ध है एवं शोध की अपेक्षा रखते है। विस्तार भय से मैं अधिक गहराई में न जाकर इस चर्चा को यहीं विराम दे रहा हूँ। मैने इस आलेख में प्राकृत भाषा में रचित जैन कृतियों के नाम मात्र दिये हैं। जहाँ तक सम्भव हो सका लेखक और रचनाकाल का भी संकेत मात्र किया है। ग्रन्थ की विषय वस्तु एवं अन्य विशेषताओं की कोई चर्चा नहीं की है। अन्यथा यह आलेख स्वयं एक पुस्तकाकार हो जता है। यह भी सम्भव है कि मेरी जानकारी के अभाव में कुछ प्राकृत ग्रन्थ छूट भी गये हो, एतदर्थ मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। विद्वानों से प्राप्त सूचना पर उन्हें सम्मिलित किया ज सकेगा। .. [22]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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