________________ की चर्चा है दूसरा विभाग गणधरवाद के नाम से प्रसिद्ध है- इसमें ग्यारह गणधरो की प्रमुख शंकाओ का निर्देशकर उनके महावीर द्वारा दिये गये समाधानों की चर्चा करता है। तृतीय विभाग निह्नवों की चर्चा करता है। इसके अतिरिक्त वर्तमान में वृहत्कल्पभाष्य व्यवहारभाष्य, जैतकल्पभाष्य, पंचकल्पभाष्य भी उपलब्ध है। बृहदकल्प पर वृहद्भाष्य और लघुभाष्य ऐसे दो भाष्य मिलते है। व्यवहारभाष्य, जैतकल्पभाष्य ऐसे दो अन्य भाष्य भी मिलते है। पिण्डनियुक्तिभाष्य के भी दो संस्करण मिलते है। इसी प्रकार पिण्डनियुक्ति पर भी एक अन्य भाष्य भी लिखा गया है, किन्तु ये तीनो भाष्य मैने नहीं देखे है। भाष्यों में व्यवहारभाष्य, जैवकल्पभाष्य और वृहत्कल्पभाष्य आजमूल प्राकृत और उसके हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित भी हैइस सम्बंध में समणी कुसुमप्रज्ञाजे का श्रम स्तुत्य है। यह स्पष्ट है कि भाष्य भी मूलतः प्राकृत भाषा में रचित हैं, साथ ही यह भी ज्ञातव्य है कि नियुक्ति और भाष्य दोनों पद्यात्मक है, जबकि कालांतर में इन पर लिखी गई चूर्णियाँ प्राकृत-संस्कृत मिश्रित भाषा में गद्य में लिखी गई है। फिर भी चूर्णियों की भाषा पर प्राकृत का बाहुल्य है। भाष्यों का रचनाकाल 6-7 शती के लगभग है, यद्यपि कुछ भाष्य परवर्ती भी है। चूर्णिया 7वीं-8वीं शती के मध्य लिखी गई। चूर्णियो में निशीथचूर्णि सबसे महत्त्वपूर्ण और विशाल है यह अपने मूलस्वरूप में चार खण्डों में प्रकाशित है। इसके साथ ही आवश्यकचूर्णि भी अति महत्त्वपूर्ण है, यह भी अपने विशाल आकार में मूल मात्र ही दो खण्डों में पूर्व में मुद्रित हुई थी, किन्तु वर्तमान में प्राय: अनुपलब्ध है। इनके अतिरिक्त अन्य चूर्णियाँ निम्न है- आचारांगचूर्णि, उत्तराध्ययनचूर्णि, दशवैकालिकचूर्णि, सूत्रकृतांगचूर्णि, जैतकल्पचूर्णि, नन्दीचूर्णि आदि। इनमें से नन्दीचूर्णि भी प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी से प्रकाशित है। आजइन चूर्णियों के हिन्दी अनुवाद की महती आवश्यकता है। . चूर्णियो के पश्चात् प्राकृत आगम साहित्य पर टीकाएँ भी लिखी गई हैं। टीकाएँ प्रायः संस्कृत में है। टीकाकारों में हरिभद्र, शीलांक अभयदेव, मलयगिरि आदि प्रसिद्ध है। किन्तु इन टीकाओं में शांतिसूरि की उत्तराध्ययन की पाइअ टीका (प्राय: नवी शती) अति प्राचीन एवं प्रसिद्ध है और जे मूलतः प्राकृत भाषा में ही निबद्ध है। यह लगभग सौ वर्ष पूर्व दो खण्डो में प्रकाशित है। टीकाओं में यही एक ऐसी टीका है, जे प्राकृत भाषा में लिखित है। [17]