________________ आगम प्राकृत के स्वतंत्र ग्रंथ नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीकाओं के साथ ही पूर्व मध्यकाल में प्राकृत भाषा में अनेक आगमिक विषयो पर स्वतंत्र ग्रंथ भी लिखे गये। इनमें भी जैवसमास, लोकविभाग, पक्खीसूत्र, संग्रहणीसूत्र, क्षेत्रसमास, अंगपण्णत्ति, अंगविज्ज आदि प्रमुख है। इसी क्रम में ध्यान साधना से सम्बन्धित जिमभद्रगणि का झाणाध्ययन अपरनाम ध्यानशतक (ईसा की 6टी शती) भी प्रकाश में आया। हरिभद्र के प्राकृत योग ग्रंथों में योगविंशिका, योगशतक सम्बोधप्रकरण प्रसिद्ध ही है। इसी प्रकार हरिभद्र का धूर्ताख्यान भी बहुत ही प्रसिद्ध ग्रन्थ है, किन्तु हम इसकी चर्चा प्राकृत कथा साहित्य में करेंगे। इसी क्रम में उपदेशपरक प्राकृत ग्रंथों में हरिभद्र के सावयपण्णति, पंचाशकप्रकरण, पंचसुत्त, पंचवत्थु, संबोधप्रकरण आदि भी बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी क्रम में अन्य उपदेशात्मक ग्रन्थों में धम्मसंगहिणी, संबोधसत्तरी, धर्मदासगणि की उपदेशमाला, खरतरगच्छीय आचार्य की सोमप्रभ की उपदेशपुष्पमाला आदि भी प्रसिद्ध है। इसी क्रम में दिगम्बर परम्परा में देवसेन (10वी शती) के भावसंग्रह, दर्शनसार, आराधनासार, ज्ञानसार, सावयधम्मदोहा आदि भी प्राकृत की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ है। आगम प्राकृत कथा साहित्य यद्यपि आगमों में अनेक ग्रंथ तो पूर्णत: कथा रूप ही है, जैसे ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, अन्तरकृत्दशा, विपाकसूत्र औपपातिकसूत्र, पयूषणाकल्प आदि। जबूदीपप्रज्ञाप्ति का कुछ अंश, जे ऋषभदेव, भरत आदि के चरित्र का वर्णन करता है भी कथा रूप ही है। किन्तु इनके अतिरिक्त भी आगमिक व्याख्या साहित्य में विशेष रूप से नियुक्तियों भाष्यों और चूर्णियों में भी अनेक कथाएं है। पिण्डनियुक्ति, संवेगरंगशाला आराधनापताका आदि में भी अनेक कथाओं के निर्देश या संकेत उपलब्ध है। विषयों का स्पष्टीकरण करने में, ये कथाएं बहुत ही सार्थक सिद्ध होती है। इन उपदेशात्मक कथाओं के अतिरिक्त जैन आचार्यों ने अनेक आदर्श पुरूषो के जीवन चरित्रों पर स्वतंत्र ग्रंथ भी लिखे गये है। [18]