SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और मुख्यत: महाराष्ट्री प्राकृत को अपनी लेखनी का विषय बनाया। उपरोक्त ग्रंथो के साथ ही जैन कर्मसाहित्य का पंचसंग्रह नामक ग्रंथ भी प्राकृत भाषा में उपलब्ध है। ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में प्राकृत भाषा निबद्ध पंचसंग्रह उपलब्ध है। यद्यपि दिगम्बर परम्परा में संस्कृत भाषा में भी पंचसंग्रह नामक ग्रंथ मिलते है। श्वेताम्बर परम्परा में प्राचीन कम्मपयडी आदि और देवेन्द्रसूरि रचित नवीन पांच कर्मग्रन्थ भी प्राकृत में ही रचित है। आगमिक व्याख्या साहित्य __ आगमों के पश्चात् प्राकृत साहित्य की रचना के क्रम की दृष्टि से आगमिक व्याख्याओ का क्रम आता है। इनमें नियुक्तियाँ प्राचीनतम है। रचना-काल की अपेक्षा नियुक्तियाँ आर्यभद्र की रचनाएँ है और उनका रचना काल ईस्वीसन् की प्रथम या द्वितीय शती के बाद का नहीं हो सकता है। यद्यपि सभी महत्त्वपूर्ण आगम ग्रंथों पर नियुक्तियाँ नही लिखी गई है, आगम साहित्य के कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथों पर ही नियुक्तियाँ लिखी गई थी, जो आज भी उपलब्ध है। इनमें प्रमुख है - 1. आवश्यक नियुक्ति, 2. आचारांग नियुक्ति, 3. दशवैकालिक नियुक्ति; 4. उत्तराध्ययन नियुक्ति, 5. सूत्रकृतांग नियुक्ति, 6. दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति, 7. वृहदकल्पनियुक्ति आदि। निशीथसूत्र पर भी नियुक्ति लिखी गई थी, किन्तु यह निशीथ भाष्य में इतनी घुल मिल गई है कि उसे उससे अलग कर पाना कठिन है। इनके अरिरिक्त सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित पर भी नियुक्ति लिखे जने की प्रतिज्ञा तो उपलब्ध है, किन्तु ये नियुक्तियाँ लिखी भी गई थी या नहीं, यह कह पाना कठिन है। प्राचीन स्तर की नियुक्तियाँ उस आगम का संक्षिप्त उल्लेख कर कुछ महत्वपूर्ण शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करती है। इनके अतिरिक्त नियुक्ति साहित्य के दो अन्य ग्रंथ और भी उपलब्ध है- 1. पिण्डनियुक्ति और 2. औधनियुक्ति, यद्यपि ये दोनों ग्रंथ दशवैकालिमकनियुक्ति के ही एक विभाग के रूप में भी माने जते है। साथ ही श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा इन दोनों को आगम स्थानीय भी मानती है। गोविंदाचार्य कृत दशवकालिक नियुक्ति की सूचना तो उपलब्ध है, किन्तु वर्तमान में यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। आगमिक व्याख्या साहित्य में नियुक्तियों के बाद भाष्य लिखे गये। भाष्यों में विशेषावश्यकभाष्य विशेष प्रसिद्ध है। इसके तीन विभाग है प्रथम विभाग में पंच ज्ञानों [16]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy