________________ शेषनाममाला, शब्दसंदोहसंग्रह, शब्दरत्नप्रदीप, विश्रवलोचनकोश, नानार्थकोश, पंचवर्ग संग्रहनाममाला, अपवर्गनाममाला, एकाक्षरी नानार्थकांड, एकाक्षरीनाममालिका, एकाक्षरकोश, एकाक्षरनाममाला आदि। इस प्रकार जैनाचार्यो ने संस्कृत में अनेक कोश ग्रन्थों की भी रचना की है। समग्ररूप से कहे तो जैनाचार्यो का संस्कृत साहित्य को विपुल एवं विराट अवदान है। प्रस्तुत आलेख में समाविष्ट विषयों के अतिरिक्त जैनाचार्यो ने अलंकारशास्त्र, छन्दशास्त्र, नाटक एवं नाट्यशास्त्र, संगीत, कला, गणित, ज्योतिष, शकुन, निमित्त, स्वप्न, चूडामणि सामुद्रिक, रमल लक्षण शास्त्र, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, शिलाशास्त्र, मुद्राशास्त्र, छातुविज्ञान, प्राणीविज्ञान आदि पर भी संस्कृत में ग्रन्थ लिखे है, जिनकी चर्चा आगामी लेख में करेगे। अलंकार एवं काव्यानुशासन सम्बन्धी जैन कृतियाँ कविशिक्षा, काव्यानुशासन, काव्यानुशासनवृत्ति, काव्यानुशासन-वृत्ति (विवेक), अलंकारचूडामणि-वृत्ति, काव्यानुशासन-वृत्ति, काव्यानुशासन -अवचूरि, कल्पलता, कल्पलतापल्लव, कल्पपल्लवशेष, वाग्भटालंकार, वाग्भटालंकार-वृत्ति, कविशिक्षा, अलंकारमहोदधि, अलंकारमहोदधि-वृत्ति काव्यशिक्षा, काव्यशिक्षा और कवितारहस्य, काव्यकल्पलता-वृत्ति, काव्यकल्पलतापरिमल-वृत्ति , तथा काव्यकल्पलतामंजरी-वृत्ति, काव्यकल्पलतावृत्ति- मकरंदटीका, काव्यकल्पलतावृत्ति-टीका, काव्यकल्पलतावृत्ति-बालावबोध, अलंकारप्रबोध, काव्यानुशासन, अलंकारसंग्रह, अलंकारमंडन, काव्यालंकारसार, अकबरसाहिश्रृंगारदर्पण, कविमुखमंडन, कविमदपरिहार, कविमदपरिहार-वृत्ति, मुग्धमेघालंकार, मुग्धमेघालंकार-वृत्ति, काव्यलक्षण, कर्णालंकारमंजरी, प्रक्रान्तालंकार-वृत्ति, अलंकार-चूर्णि, अलंकारचिंतामणि, अलंकारचिंतामणि-वृत्ति, वक्रोक्तिपंचाशिका, रूपकमंजरी, रूपकमाला, काव्यादर्श-वृत्ति, काव्यालंकार-वृत्ति, काव्यालंकार-निबंधनवृत्ति, काव्यप्रकाश-संकेतवृत्ति, काव्यप्रकाश-टीका, सारदीपिका-वृत्ति, काव्यप्रकाश-वृत्ति, काव्यप्रकाश-खांडन, सरस्वतीकंठाभरण-वृत्ति विदग्धमुखमंडन-अवचूर्णि, विदग्धमुखमंडन-टीका, विदग्धमुखमंडन-वृत्ति, विदग्धमुखमंडन-अवचूरि, विदग्धमुखमंडन-बालावबोध, अलंकारावचूर्णि। [133]