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________________ छन्दशास्त्र सम्बन्धी जैनाचार्यो की कृतियाँ निम्न है - रत्नमंजूषा, रत्नमंजूषा-भाष्य, छंदःशास्त्र, छंदोनुशासन, छंदोनुशासन-वृत्ति, छंदोरत्नावली, छंदोनुशासन, छंदोविद्या, पिंगलशिरोमणि, आर्यासंख्या-उद्दिष्ट-नष्टवर्तनविधि, वृत्तमौक्तिक, छंदोवतंस, प्रस्तारविमलेंदु, छंदोद्वात्रिंशिका, जयदेवछंदस्, जयदेवछंदोवृत्ति, जसदेवछंदःशास्त्रवृत्ति-टिप्पनक, स्वयंभूच्छन्दस्, वृत्तजतिसमुच्चय, वृत्तजतिसमुच्चय-वृत्ति, गाथालक्षण, गाथालक्षण-वृत्ति, कविदर्पण, कविदर्पण-वृत्ति, छंद:कोश, छंद:कोशवृत्ति, छंद:कोश-बालावबोध, छंद:कंदली, छंदस्तत्त्व, जैनेतर ग्रन्थों पर जैन विद्वानों के टीकाग्रन्था . नाट्यशास्त्र सम्बन्धी जैनाचार्यो की संस्कृत कृतियाँ भी अनेक है, उनमें प्रमुख निम्न है - नाट्यदर्पण, नाट्यदर्पण-विवृति, प्रबंधशत। __ संगीतशास्त्र पर भी जैनाचार्यो ने संस्कृत में निम्न कृतियाँ लिखी है यथा - संगीतसमयसार, संगीतोपनिषत्सारोद्वार, संगीतोपनिषत्, संगीतमंडन, संगीतदीपक, संगीतरत्नावली, संगीतसहपिंगल। . चित्रकला पर भी संस्कृत भाषा में जैनाचार्यो के निम्न तीन प्रसिद्ध ग्रन्थ है चित्रवर्णसंग्रह, कलाकलाप, मषीविचार। गणित विषय सम्बन्धी संस्कृत ग्रन्थों पर भी जैनाचार्यों ने मूलग्रन्थ एवं टीकाएँ लिखी है, जे निम्न है - गणितसारसंग्रह, गणितसारसंग्रह-टीका, षट्विंशिका, गणितसारकौमुदी, पाटीगणित, गणितसंग्रह, सिद्ध-भू-पद्धति-टीका, क्षेत्रगणितत्र इष्टांकविंशतिका, गणितसूत्र; गणितसार-टीका, गणिततिलक-वृत्ति। ज्योतिष भी जैनाचार्यो का प्रिय विषय रहा है उस पर उन्होंने संस्कृत एवं प्राकृत में अनेक ग्रन्थ लिखे। उनमें प्रमुख संस्कृत ग्रन्थ निम्न है - ज्योतिस्सार, लग्गसुद्धि, दिणसुद्धि, कालसंहितां, गणहरहोरा, पश्नपद्धति, भुवनदीपक। [134]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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