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________________ उपर्युक्त समग्र चर्चा से यह फलित होता है कि नियुक्तियों के कर्ता न तो चतुर्दशपूर्वधर आर्य भद्रबाहु हैं और न वाराहमिहिर के भाई नैमित्तिक भद्रबाहु / यह भी सुनिश्चित है कि नियुक्तियों की रचना छेदसूत्रों की रचना के पश्चात हुई है। किंतु यह भी सत्य है कि नियुक्तियों का अस्तित्व आगमों की देवर्द्धि के समय हुई वाचना के पूर्वथा। अतः यह अवधारणा भी भ्रांत है कि नियुक्तियां विक्रम की छठीं सदी के उत्तरार्द्ध में निर्मित हुई हैं। नंदीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र की रचना के पूर्व आगमिक नियुक्तियां अवश्य थीं। अब यह प्रश्न उठता है कि यदि नियुक्तियों के कर्ता श्रुत केवली पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु तथा वाराहमिहिर के भाई नैमित्तिक भद्रबाहु दोनों ही नहीं थे, तो फिर वे कौन से भद्रबाहु हैं जिनका नाम नियुक्ति के कर्ता के रूप में माना जाता है। नियुक्ति के कर्ता के रूप में भद्रबाहु की अनुश्रुति जुड़ी होने से इतना तो निश्चित है कि नियुक्तियों का सम्बंध किसी 'भद्र' नामक व्यक्ति से होना चाहिए और उनका अस्तित्व लगभग विक्रम की तीसरी-चौथी सदी के आस-पास होना चाहिए / क्योंकि नियमसार में आवश्यक की नियुक्ति, मूलाचार में नियुक्तियों के अस्वाध्याय काल में भी पढ़ने का निर्देश तथा उसमें और भगवती आराधना में नियुक्तियों की अनेक गाथाओं की नियुक्ति-गाथा के उल्लेखपूर्वक उपस्थिति यही सिद्ध करती है कि नियुक्ति के कर्ता उस अविभक्त परम्परा के होने चाहिए जिससे श्वेताम्बर एवं यापनीय सम्प्रदायों का विकास हुआ है।कल्पसूत्र स्थविरावली में जो आचार्य परम्परा प्राप्त होती है, उसमें भगवान महावीर की परम्परा में प्राचीनगोत्रीय श्रुतकेवली भद्रबाहु के अतिरिक्त दोअन्य भद्र' नामक आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है- 1. आर्य शिवभूति के शिष्य काश्यपगोत्रीय आर्यभद्र और 2. आर्य कालक के शिष्य गौतमगोत्रीय, आर्यभद्र। . संक्षेप में कल्पसूत्र की यह आचार्य परम्परा इस प्रकार है-महावीर, गौतम, सुधर्मा, जम्बू, प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र, संभूति, विजय, भद्रबाहु (चतुर्दशपूर्वधर), स्थूलिभद्र (ज्ञातव्य है कि भद्रबाहु एवं स्थूलिभद्र दोनों ही संभूतिविजय के शिष्य थे), आर्यसुहस्ति, सुस्थित, इंद्रदिन्न, आर्यदिन्न, आर्यसिंहगिरि, आर्यवज्र, आर्यवज्रसेन, आर्यरथ, आर्य पुष्यगिरि, आर्य फल्गुमित्र, आर्य धनगिरि, आर्य शिवभूति, आर्यभद्र (काश्यपगोत्रीय,) आर्यकृष्ण, आर्यनक्षत्र, आर्यरक्षित, आर्यनाग, आर्यज्येष्ठिल, आर्यविष्णु, आर्ययालक, आर्यसंपलित, आर्यभद्र (गौतमगोत्रीय), आर्यवृद्ध, आर्य संघपालित, आर्यहस्ती, आर्यधर्म, आर्यसिंह, आर्यधर्म, षाण्डिल्य (सम्भवतः स्कंदिल, जोमाथुरी वाचना के वाचना प्रमुख थे) आदि। गाथाबद्ध जो स्थविरावली है उसमें इसके बाद जम्बू, नंदिल, दुष्यगणि, स्थिरगुप्त, कुमारधर्म एवं देवर्द्धिक्षपकश्रमण के पांच नाम और आतेहैं।" [105]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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