________________ दो आधारों पर.व्याख्यायित किया। प्रथम, चतुर्दश पूर्वधरों में आपस में अर्थज्ञान की अपेक्षा से कमी-अधिकता होती है, इस दृष्टि से यह कहा गया हो कि पदार्थों का सम्पूर्ण स्वरूप तो चतुर्दशपूर्वी ही बता सकते हैं अथवा द्वार गाथा से लेकर आगे की ये सभी गाथाएं भाष्य गाथाएं हों।" यद्यपि मुनि पुण्यविजयजी इन्हें भाष्य गाथाएं स्वीकार नहीं करते हैं। चाहे ये गाथाएं भाष्यगाथा हों या न हों किंतु मेरी दृष्टि में शान्त्याचार्य ने नियुक्तियों में भाष्य-गाथा मिली होने की जो कल्पना की है, वह पूर्णतया असंगत नहीं है। - पुनः जैसा पूर्व में सूचित किया जा चुका है, सूत्रकृतांग के पुण्डरीक अध्ययन की नियुक्ति में पुण्डरीक शब्द की नियुक्ति करते समय उसके द्रव्य निक्षेप से एकभविक, बद्धायुष्य और अभिमुखित नाम-गोत्र ऐसे तीन आदेशों का नियुक्तिकार ने स्वयं ही संग्रह किया है। बृहत्कल्पसूत्रभाष्य (प्रथम विभाग, पृ.44-45) में ये तीनों आदेश आर्य सुहस्ति, आर्य मंगु एवं आर्य समुद्र की मान्यताओं के रूप में उल्लिखित है। इतना तो निश्चित है कि ये तीनों आचार्य पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु (प्रथम) से परवर्ती हैं और उनके मतों का संग्रह पूर्वधर भद्रबाहु द्वारा सम्भव नहीं है। दशाश्रुतस्कंध की नियुक्ति के प्रारम्भ में निम्न गाथा दी गई है 'वंदामिभद्दबाहुं पाईणं चरिमसयलसुयनाणिं। सुत्तस्स कारगमिसिं दसासु कप्पेय ववहारे।' ___ इसमें सकल श्रुतज्ञानी प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु का न केवल वंदन किया गया है, अपितु उन्हें दशाश्रुतस्कंध कल्प एवं व्यवहार का रचयिता भी कहा है, यदि नियुक्तियों के लेखक पूर्वधर श्रुतकेवली भद्रबाहु होते तो वे स्वयं ही अपनेको कैसे नमस्कार करते? इस गाथा को हम प्रक्षिप्त या भाष्य गाथा भी नहीं कह सकते, क्योंकि प्रथम तो यह ग्रंथ की प्रारम्भिक मंगल गाथा है, दूसरे चूर्णिकार ने स्वयं इसको नियुक्ति गाथा के रूप में मान्य किया है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नियुक्तिकार चतुर्दश पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु नहीं हो सकते। - इस समस्त चर्चा के अंत में मुनि जी इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि परम्परागत दृष्टि से दशाश्रुतस्कंध, कल्पसूत्र, व्यवहारसूत्र एवं निशीथ ये चार छेदसूत्र, आवश्यक आदि दस नियुक्तियां, उवसग्गहर एवं भद्रबाहु संहिता ये सभी चतुर्दश पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु स्वामी की कृति माने जाते हैं , किंतु इनमें से4 छेद सूत्रों के रचयिता तोचतुर्दश पूर्वधर आर्य भद्रबाहु ही हैं। शेष दस नियुक्तियों, उवसग्गहर एवं भद्रबाहु संहिता के रचयिता अन्य कोई भद्रबाहु होने चाहिए और सम्भवतः ये अन्य कोई नहीं, अपितु वाराह संहिता के रचयिता [99]