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________________ वराहमिहिर के भाई, मंत्रविद्या के पारगामी नैमित्तिक भद्रबाहु ही होनेचाहिए।" मुनिश्री पुण्यविजय जी ने नियुक्तियों के कर्ता नैमित्तिक भद्रबाहु हीथे, यह कल्पना निम्न तर्को के आधार पर की है1. आवश्यकनियुक्ति की गाथा 1252 से1270 तक में गंधर्व नागदत्त का कथानक आया है। इसमें नागदत्त के द्वारा सर्प के विष उतारने की क्रिया का वर्णन है।" उवसग्गहर (उपसर्गहर) में भी सर्प के विष उतारने की चर्चा है। अतः दोनों के कर्ता एक ही हैं और वे मंत्र-तंत्र में आस्था रखते थे। 2. पुनः नैमित्तिक भद्रबाहु की नियुक्तियों के कर्ता होने चाहिए इसका एक आधार यह भी है कि उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा गाथा में सूर्यप्रज्ञप्ति पर नियुक्ति लिखनेकी प्रतिज्ञा की थी। ऐसा साहस कोई ज्योतिष का विद्वान ही कर सकता था। इसके अतिरिक्त आचारांगनियुक्ति में तो स्पष्ट रूप से निमित्त विद्या का निर्देश भी हुआ है।” अतः मुनिश्री पुण्यविजय जी नियुक्ति के कर्ता के रूप में नैमित्तिक भद्रबाहु को स्वीकार करते हैं। . ___ यदि हम नियुक्तिकार के रूप में नैमित्तिक भद्रबाहु को स्वीकार करते हैं तो हमें यह भी मानना होगा कि नियुक्तियां विक्रम की छठीं सदी की रचनाएं हैं, क्योंकि वराहमिहिर ने अपने ग्रंथ के अंत में शक संवत् 427 अर्थात विक्रम संवत् 566 का उल्लेख किया है। नैमित्तिक भद्रबाहु वराहमिहिर के भाई थे, अतः वे उनके समकालीन हैं। ऐसी स्थिति में यही मानना होगा कि नियुक्तियों का रचना-काल भी विक्रम की छठी शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। यदि हम उपर्युक्त आधारों पर नियुक्तियों को विक्रम की छठीं सदी में हुए नैमित्तिक भद्रबाहु की कृति मानतेहैं, तो भी हमारे सामने कुछ प्रश्न उपस्थित होते हैं1. प्रथम तोयह किनन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र में नियुक्तियों के अस्तित्व का स्पष्ट उल्लेख है‘संखेजाओनिज्जुत्तीओसंखेज्जा संगहणीओ' - (नंदीसूत्र, सूत्र सं.46) ‘स सुत्तेसअत्थेसगंथेसनिज्जुत्तिए ससंगहणिए' __- (पाषिकसूत्र, पृ.80) इतना निश्चित है कि ये दोनों ग्रंथ विक्रम की छठीं सदी के पूर्व निर्मित हो चुके थे। यदि नियुक्तियां छठीं सदी उत्तरार्द्ध की रचना हैं तो फिर विक्रम की पांचवीं शती के उत्तरार्द्ध या छठी शती के पूर्वार्द्ध के ग्रंथों में छठीं सदी के उत्तरार्द्ध में रचित नियुक्तियों का उल्लेख कैसे संभव है? इस सम्बंध में मुनिश्री पुण्यविजय जी ने तर्क दिया है कि नंदीसूत्र में जो [100]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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