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________________ (6) अने आवा महर्षिोनुं सकल जनसमुदायना हृदयमा विशिष्ट महत्वभयुं स्थान सदा स्थापित थाय छे. आमांना एक प्रस्तुत ग्रंथकार श्री सोमप्रभसरि छे. पूज्यश्रीना जीवननो जन्म-दीक्षा विगेरे बाबतो विषे खास स्पष्टता मलतो नथी. जो के एमना जीवनना केटलाक एतिहासिक बनावो विषे थोडं जाणवी मले छे ते प्रमाणे तेओश्रोए पोताना जन्मथी भारतवर्षनी पुनित धरतीने सं. 1310 मां वधु उज्ज्वलता अर्षी छे तेओश्रीनी दीक्षा-आचार्यपद-स्वर्गगमन अनुक्रमे सं. १३२१-१३३२-१३७३नी मां नोंधाएली छ वीरवंशापलो ( जैन साहित्यसंशोधक खंड एक ) मा सं. 1375 मां स्वर्गवास जणाव्यो छे. पज्यश्रीने अगीआर अंग कंठस्थ हता अने प्रतिदिन तेओ स्वाध्याय करता हता. आ उपरथी तेमनी कुशाग्रबुद्धि अने स्वाध्याय तत्परता समजाय छे. आ सिवायनी अनेक ऐतिहासिक घटनाओनो उल्लेख गर्वावली तपागच्छ-पट्टावली विगेरेमा जोवा मले छे आ बधानो उल्लेख करता प्रस्तावना लांबी थाय एटले आटलेथी टुंकावीने वृत्तिकार विषे उल्लेख करु छु. वत्तिकार-आ वृत्तिना रचयिता श्री साधुरत्नसरि, मूलकार श्रीसोमप्रभसरिना प्रशिष्य अने 49 मा पट्टधर श्री देवसुंदरसूरिना पांच प्रसिद्ध आचार्य शिष्योमांना एक छे. सामान्य जन्म दिविषे खास माहिती मलती नथी. वीरवंशावलीमां पांच शिष्योने एक समये आचार्य पदवी आप्यान जणाव्युं छे. अने ते पण तेना लेखकना लखवाना आशय मुजब सं 1462 बाद आचार्य पदवी थयानुं जणाय छे. परंतु आ बाबत बरोबर जणाती नथी. कारणके तेमा आगल आ पांच पैकी छेल्ला आचार्य सोमसुंदरसूरि नी आचार्य पदवी सं. 1457 नी जणावाइ छे. आ सिवाय तपगच्छ पटावलीमां ( महा० धर्मसागरजी म० ) आ पांच पैको त्रणनी आचार्य पदवीनी संवतो भिन्न जणावाइ छ. आम आ वात' बरोबर लागती नथी एटलुं निश्चित जणाय छ के-आ ,वृत्तिनी रचना सं. 1456 नी छे. एटले सं. 1456 सुधीनी विद्यमानता तो छे. तेमनी कृतिमां पण आ सिवायनी अन्य कोइ जणाती नथी. रचना-मूलनी रचना संवत् विषे कोइ माहीती उपलब्ध नथी. परंतु वृत्तिनी रचना विषे आपणने स्पष्ट उल्लेख मले छे. जो के-अमने प्राप्त सं. 1965 मागशर सुद 15 रविषारना दिने बोरसद मुकामे लखाएली डभोईनी प्रतिमां रचना संवत् या प्रशस्ति नथी. जन-आनंदपुस्तकालयनी प्रति के जे सं. 1954 मागसर सुद 3 शुक्रवार वटोदरा ( वडोदरा) मां लखाएली छे. तेमां भट्टारकप्रभुजी देवसुंदर शिष्य साधुरत्नकृता आ प्रमाणे उल्लेख तेमज जैनग्रंथावलीमां पण रचना संवत 1456 जणावेली छे. तथा लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृतीविद्यामंदिर तरफथो प्रकाशित संस्कृत प्रोकृत केटेलोग भा. 4 प्रशस्त्यादि संग्रहना पेज 6-7 उपर एक प्रशस्ति छे. तेमांना निर्देश अनुसार पण आनी रचना सं. 1456 नी छे अने कर्ता साधुरत्मसरि छे. आ प्रति सं. 1623 मां अकबरना राज्यमां अलावलपुरमा भादरवा वद. 5 सोमवारे लखाई छे. आ सिवाय एक प्रति के जे अमदावाद डहेलाना उपाश्रयना भंडारनी छे ते प्रतिमां पण आवी प्रशस्ति छे. अने ए प्रशस्ति आमां छेल्ले . लखेली छे. आना कर्ता अने रचना संवत् विषे कोई शंका रहेती नथी..
SR No.004416
Book TitleJai Jiya Kappo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages182
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size21 MB
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