________________ विषयादि-आमां प्रायश्चित्तनो विषय छे. ते पण मुनिओने आश्रयीने कहेलो छे. अने ते पण प्रायश्चित्त अधिकार जीतव्यवहार अनुसारे छे. जो के-जोतशब्द जीतव्यवहारगत प्रायश्चित्त तथा जीतव्यवहारगत आचरणानो पण तेना अर्थमा समावेश करे छे. आ वातने बृहत् चूर्णि अने विषमपदव्याख्या बंनेनुं समर्थन प्राप्त थाय छे जुओ.. जीयस्से त्ति वत्तणुवत्तपवत्तो बहुसो आसेविओ महाजणेण जीयववहारो भण्णइ ' (चूर्णि) तथा-'वत्तणुवत्तेत्यादि वृत्तः-पात्रबन्धग्रन्थिदानादिकः एकदा नवो जातः, ततः अनुवृत्तः एकपुरुष यावत् / ततः प्रवृत्तः पुरुषप्रवाहेण अत एव बहुश आसेवितो महाजनेन / (विषमपदव्याख्या ) परंतु जोतकल्प तथा अन्य उपविभागरूप यति० श्राद्ध० विगेरे कल्पोना परिशीलनथी समजाय छे के-आमां प्रायश्चित्तनो अधिकार छे. आचरणानो नहिं आ वातनी साक्षी जीतकल्पनी पहेली गाथा आपे छे. आ गाथाथी ए पण ख्यालमां आवे छे के-आमां जीतव्यवहार अनुसार प्रायश्चित्तनुं विधान छे. ___ आनुं प्रकाशन उचित छ ? छेदसूत्रो अने प्रायश्चित्तना अधिकारो घणा गूढ होय छे अने तेना अधिकारीओ पण घणा अल्प होय छे. छेदसूत्रोमां उच्चतम उत्सर्गमार्ग अने उच्चतम अपवादमार्गर्नु विधान होय छे. जो के-जोतकल्प तथा तेना विभागरूप आमां प्रायश्चित्त सिवाय उत्सर्ग-अपवाद मार्ग विषे उल्लेख नथी तेमज आ सीधी रीते छेदसूत्रने स्पर्शती कृति पण नथी, परंतु प्रायश्चित्त पण अतिगहन अने गुप्त राखवान होय छे. एटले एवी द्विधा प्रवर्ते छ के छेदसूत्रोनी जेम आवा ग्रंथोर्नु प्रकाशन पण इच्छनीय या अनिच्छनीय उचित. या अनुचित. एक एवं मंतव्य पण अत्यारे श्रमणसंघना एक विभागमा प्रवर्ते छे के-छेदसूत्रो सहित तमाम ग्रंथोनुं प्रकाशन थर्बु जोइए अने प्रचार पण थवो जोइए जेथी श्रमणो प्राचीन आचारोनुं सुविशुद्ध ज्ञान प्राप्त करी शके. ___ एटली वात नक्की छे के प्रचार शब्दनो हेतु सचवाइ रहेQ जोइए अर्थात् एनो प्रचार तत्सद् योग्य मुनिओमां थवो जोइए. जे मुनिओ परिणत होय, जे मुनिओ गुर्वाज्ञाधीन होय, परमगीतार्थ गुरुनी निश्रामां रही गुर्वाज्ञा प्रमाणे जो आवा ग्रंथोनुवांचन परिशीलन करे ते कंइ अनुचित नथी. प्रश्न एटलो छ के-आवा ग्रंथोनु प्रकाशन उचित या अनुचित ? जो उचित छे तो ते केवी रीते ? आ एक गंभीर प्रश्न छे. आनो सांगी रीते विचार करतां जणाशे के-आनुं प्रकाशन कंइक अंशे उचित छे. परंतु एना प्रचार बाबतमां संयम राखवानी जरूरत छ अर्थात् आवा ग्रंथो प्रकाशित थवा जोइए परंतु वेचाण न करतां योग्य ज्ञानभंडारो अने योग्य मुनिओने सुप्रत करवा जोइए. अने मर्यादित संख्यामां प्रकाशित करवा जोइए अने आनुं प्रकाशन कार्य पण गीतार्थों द्वारा थर्बु जोइए. जेम देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणे आगमोने पुस्तकारूढ कर्या तेवी रीते आ पण. आवा ग्रंथोनी प्रतिओनुं प्रमोण अल्प जोवाय छे. अधुरामा पुरुं आ हस्तलेखित प्रतिओनुं वांचन करनाराओनी संख्या बेहद प्रमाणमां घटी गइ छे. घटी रही छे. कारण आपणा दुर्भाग्ये कहो तो तेम पण. हवे आवा वांचनोमां रस पण घटतो रह्यो छे. आटलुं अपूर्ण होय तेम तेना प्रत्येनी उपेक्षाथी लेखको पण घटी रह्या छे. आमने आम परिस्थिति चालु रही तो नजीकना भविष्यमां आवा ग्रंथो विलुप्तप्रायः बनी जशे अने जे हशे ते पण आपणा