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________________ आगम निबंधमाला चार स्थावर :- (1) अप्काय- त्रस स्थावर प्राणियों के सचित्त-अचित्त शरीर में जहाँ पोलार, वायु हो, वहाँ पानी के जीव उत्पन्न होते हैं और फिर उस अप्काय में अन्य अप्काय के जीव उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार (1) त्रस स्थावर योनिक जल (2) जल योनिक जल, इन दोनों में (3) त्रस जीव उत्पन्न होते हैं / प्रारंभ में सभी जीव अपने उत्पत्ति स्थान के स्नेह का आहार करते हैं / बाद में यथायोग्य छ: काया जीवों के शरीर का आहार करते हैं / वनस्पति के समान पानी संबंधी चार आलापक हैं(१) त्रस स्थावर योनिक जल जीव (2) त्रस-स्थावर योनिकजल में जल जीव (3) जलयोनिक जल में जल जीव (4) जलयोनिक जल में त्रस जीव / (2) अग्निकाय :- त्रस-स्थावर प्राणियों के सचित्त-अचित्त शरीर में या उनके आश्रय में उत्पन्न होते हैं तथा उन्हीं के स्नेह का आहार करते हैं / फिर उस अग्नि में अन्य अग्निकाय के जीव और क्रमश: त्रस जीव पैदा होते हैं। चारों आलापक पूर्ववत् समझना। (3) वायुकाय (4) पृथ्वीकाय :अग्नि के समान ही वायु तथा पृथ्वी के चार-चार आलापक जानना। अध्ययन के अंत में उपसंहार करते हुए कहा गया है कि इस प्रकार संसार के समस्त प्राणी कर्म विपाक अनुसार जन्म मरण और आहार करते हैं / इस तत्त्व को जानकर मुमुक्षु साधक आहार के विषय में गुप्ति करे अथवा योग्य समिति करे और संयम-तप द्वारा मोक्ष की साधना म सदा प्रयत्नशील रहे / निबंध-४७ प्रत्याख्यान का महत्त्व एव श्रद्धा किसी व्यक्ति ने राजा को मारने का संकल्प किया। वह अवसर की प्रतिक्षा करता है। प्रतीक्षा में 10 वर्ष व्यतीत हो गये अवसर नहीं मिला / वह व्यक्ति राजा का अमित्र, वधक ही कहलायेगा / मित्र नहीं कहलायेगा। संकल्प का त्याग नहीं करने से वह खाने-पीने के एवं ऐसो-आराम के समय भी वैरी-वधक ही माना जाता है / जब वह विचार परिवर्तन से उस संकल्प का त्याग कर दे तो फिर वह वधक या वैरी नहीं रहेगा। संसार के प्राणी सन्नी असन्नि अवस्थाओं में भ्रमण करते रहते / 98 /
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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