________________ आगम निबंधमाला (2) धान्य (3) हरियाली(हरितकाय) संबंधी 4-4 आलापक है / इस प्रकार आय, काय, कुहणा, भूफोडा, सर्पछत्रा आदि वनस्पति के आहार संबंध में केवल एक ही आलापक समझना, चार नहीं / (3) पृथ्वी के समान जल में भी वृक्ष उत्पन्न होते हैं / वे पृथ्वीयोनिक की जगह उदक योनिक कहलाते हैं / इसके भी चार आलापक वृक्ष के, चार अध्यारोह के, चार तृण के, चार धान्य के, एवं चार हरियाली के आलापक होते हैं / आय, काय आदि का एक आलापक ही होता है। (4) इन उपरोक्त स्थलज, जलज सभी वनस्पति भेदों के निश्रा में त्रस जीव उत्पन्न हो सकते हैं / वे उस वनस्पति के स्नेह का आहार करते हैं और संयोगानुसार छकाया जीवों का भी आहार करते हैं / मनुष्य :- माता-पिता के शुक्र शोणित के मिश्रण के स्नेह का सर्व प्रथम आहार करता है। बाद में माता द्वारा किये गये आहार स उत्पन्न रस के ओज का आहार करता है। गर्भ से बाहर आने पर स्तनपान से माता के दूध और स्नेह(घी) का आहार करता है / अनुक्रम से बडा होने पर नाना प्रकार के आहार एवं छः काया का आहार करता है। तिर्यंच पंचेन्द्रिय :- मनुष्य के वर्णन के समान समझना। कुछ विशेषताएँ इस प्रकार है- जलचर जीव गर्भ के बाहर आने पर स्तनपान नहीं करते किंतु जल के स्नेह का आहार करते हैं / अन्क्रम से वृद्धि पाने पर वनस्पति और त्रस, स्थावर प्राणियों का आहार करते हैं और छ: काय के मुक्त शरीर का आहार करते हैं / पक्षी भी स्तनपान नहीं करते किंतु वे प्रारंभ में माता के शरीर के स्नेह का आहार करते हैं / उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प प्रारंभ में वायु के स्नेह का आहार करते हैं / विकलेंद्रिय :- विकलेन्द्रिय जीव त्रस-स्थावर प्राणियों के सचित्त या अचित्त शरीर में उत्पन्न होते हैं और उसी शरीर के स्नेह का प्रथम आहार करते हैं / कुछ समय बाद(पर्याप्त होने बाद) यथा संयोग अन्य त्रस-स्थावर प्राणियों के शरीर से भी आहार प्राप्त करते हैं / इसके अतिरिक्त अशुचि में, पसीने में, गंदे स्थानों में और चर्म कीट आदि रूप में भी उत्पन्न होते हैं और वहीं का आहार ग्रहण करते हैं / / 97