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________________ आगम निबंधमाला उत्पन्न होते हैं / वे भी पृथ्वी के अंदर होने से पृथ्वी का स्नेह खींच कर आहार ग्रहण करते हैं / उसके बाद स्कंध आदि के जीव पृथ्वी से आहार लेने वाले मूल-कंद के जीवों के स्नेह का आहार ग्रहण करते हैं / इसके अतिरिक्त ये सभी वनस्पति विभागों के जीव स्वतंत्र भी छकाया के जीवों का संयोग अनुसार आहार करते हैं और अपने शरीर रूप में परिणत करते हैं / इस प्रकार की आहार पद्धति के अनुसार यहाँ वनस्पति जीवों के चार प्रकार होते हैं-(१) पृथ्वीयोनिक वनस्पति जीव अर्थात् पृथ्वी का स्नेह खींचकर आहार ग्रहण करने वाले (पृथ्वीयोनिक वृक्ष) (2) पृथ्वीयोनिक वनस्पति जीवों से आहार ग्रहण करने वाले वनस्पति जीव(पृथ्वीयोनिक वृक्ष में वृक्ष) (3) वनस्पति जीव योनिक वनस्पति जीवों से क्रमिक आहार लेने वाले वनस्पति जीव(वृक्ष योनिक वृक्ष में वृक्ष) (4) वृक्षयोनिक वृक्ष से आहार लेने वाले वनस्पति के फल-बीजपर्यंत के दस विभागों के वनस्पति जीव / तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वनस्पति का मुख्य जीव एक होता है जो सर्वत्र व्याप्त होता है। उसके सिवाय उस वनस्पति के कण-कण में जीव होते हैं, वे अपने से पूर्व के पृथ्वी की दिशा वाले जीवों से स्नेह रूप में आहार ग्रहण करते हैं / उसके अतिरिक्त भी अपनी क्षमता संयोग अनुसार छ काया के जीवों में से किसी का भी आहार कर सकते हैं / (2) वृक्ष में कलम करके उसमें अन्य कोई वनस्पति रोपी जा सकती है। यह कलम स्कंध शाखा-प्रशाखा में की जा सकती है। इसे आगम शब्दों में वृक्ष में अध्यारोह कहा गया है / इस अध्यारोह की आहार पद्धति भी उपरोक्त अनुसार है सिर्फ प्रारंभ पृथ्वी के आहार की जगह वृक्ष से शुरू होता है / इसके भी चार प्रकार हैं- (1) वृक्षयोनिक अध्यारोह के वनस्पति जीव(वृक्ष से आहार लेने वाले) (2) वृक्षयोनिक अध्यारोह में वनस्पति जीव(वृक्षयोनिक अध्यारोह से आहार लेने वाले) (3) अध्यारोह योनिक वनस्पति जीवों में वनस्पति जीव(अध्यारोह योनिक अध्यारोह वनस्पति से आहार ग्रहण करने वाले) (4) अध्यारोह योनिक अध्यारोह के वनस्पति जीवों से आहार लेने वाले फल-बीज पर्यंत के दस विभाग के जीव / स्नेह खींचने के सिवाय भी छकाया जीवों का संयोग क्षमतानुसार आहार करते हैं / इस प्रकार (1) घास
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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