________________ आगम निबंधमाला निबंध-४६ .. बारह प्रकार के जीव और उनका आहार (1) वनस्पति (2) मनुष्य (3) तिर्यंच पंचेन्द्रिय में जलचर (4) चतुष्पद स्थलचर (5) उरपरिसर्प (6) भुजपरिसर्प (7) खेचर (8) विकलेंद्रिय (9) अप्काय (10) तेउकाय (11) वायुकाय (12) पृथ्वीकाय। _ अनुशीलन करने से यह ज्ञात होता है कि इस अध्ययन की वर्णन भगवती सूत्र, प्रज्ञापना सूत्र, जीवाभिगम सूत्र आदि के किसी भी क्रम पद्धति का अनुसरण नहीं करता है, बल्कि स्वतंत्र एवं अक्रमिक ढंग से है / जिसका वास्तविक कोई कारण तर्क शक्ति से भी ज्ञात होना कठिन सा लगता है। तथापि ऐसी कल्पना की जा सकती है कि कभी किसी के प्रमाद से भी ऐसा व्युत्क्रम बन गया हो / यदि ऐसा न हुआ हो तो फिर यह मानना ही अवशेष रहेगा कि- सूत्राणां विचित्रगतिः / सूत्र रचनाकार को जिस गुंथन में, जब जो पद्धति उचित, उपयोगी और किन्हीं अज्ञात कारणों से प्रासंगिक लगे, वही क्रम विषय गुंथन का किया जा सकता है। एसी स्थिति में क्रम अक्रम सभी निर्दोष हो जाता है और इच्छित किसी भी क्रम व्युत्क्रम से वह तत्त्व संबंधी परिज्ञान तो हो ही जाता है / यहाँ भी वनस्पति से प्रारंभ कर पृथ्वी तक विषय को पूर्ण करने के मध्य में त्रस जीवों के आहार का परिज्ञान है तो भी कुल मिला कर दस ही दंडकों के आहार संबंधी बहुत कुछ ज्ञेय तत्त्व का अनुपम अनुभव हो जाता है / अत: जो भी क्रम उपलब्ध है वह ज्ञान वर्धक ही है, उसमें कुछ भी हानि नहीं है, यह मान कर संतोष किया जाना ही समाधान कारक है / प्रश्न- उपरोक्त 12 जीव के आहार संबंधी ज्ञातव्य क्या है ? उत्तर- वनस्पति :- (1) सर्व प्रथम जो जीव पृथ्वी पर उत्पन्न होता है वह पृथ्वी के स्नेह का आहार करता है अर्थात् जैसी भी वह पृथ्वी सचित्त या अचित्त है और जैसा भी उसका वर्ण गंध रस स्पर्श आदि है उसी के सार को खींच कर बीज में आने वाला मुख्य जीव अंकुरित होता है / उसकी निश्रा में फिर मूल (जड)और कंद के जीव आकर