________________ आगम निबंधमाला ऐसे सिद्धांत से कल्याण की जगह कर्म बंध और संसार वृद्धि होने की अधिक संभावना है। कहा है- अण्णाणी किं काही, किं वा णाहिइ सेय पावगं॥दशवै.४। किसी भी क्षेत्र में अज्ञानी प्राणी अपने हिताहित का विवेक नहीं कर सकता। अत: ज्ञानपूर्वक सच्चारित्र द्वारा मुक्ति की आराधना करना ही निराबाध मार्ग है / जो सर्वज्ञ सर्वदर्शी महापुरुषो द्वारा प्रकाशित किया गया है / प्रश्न- सर्वज्ञ सर्वदर्शी का कौन सा वाद है ? क्या वह चार समवसरण में नहीं है ? उत्तर- उक्त चारों समवसरण और चारों वाद एकांतवाद की अपेक्षा कहे गये हैं। सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थंकर प्रभु का मोक्षमार्ग ज्ञान और क्रिया के सुमेल वाला सिद्धांत है / एकांत के आग्रह में प्रभु का सिद्धांत नहीं है। जिस प्रकार आटा, पानी, शक्कर एवं घी के सुमेल से हलवासीरा बनता है, उसी प्रकार प्रभु द्वारा निर्दिष्ट मोक्षमार्ग में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप चारों का समादर है, सुमेल युक्त साधना है। यों अपेक्षा से प्रभु का अनेकांगी सिद्धांत क्रियावादी के रूप में परिचय पाता है किंतु वह एकांगी क्रियावादी रूप नहीं ह / भगवती सूत्र में चार समवसरण के भेद से तत्त्व विस्तार है, वहाँ सर्वज्ञ प्रभु के सिद्धांत को क्रियावादी के नाम से सूचित किया गया है और एकांतवादियों को वहाँ तीन भेदों में ही समाविष्ट किये हैं / अतः अपेक्षा से तीर्थंकर प्रभु का मार्ग क्रियावादी समवसरण में गिनाया जाता है / वह अपेक्षा अनेकांत दर्शन रूप और एकांत आग्रह के अभाव रूप में है / मतमतांतर क्या 363 ही होते :- अलग-अलग समय में इसकी संख्या घटती बढती रहती ह / उसे किसी एक संख्या में बांधना सत्य से परे हो जाता है / अपेक्षा मात्र से और विवक्षा से ही उस संख्या का सुमेल करना पडता है / वास्तव में मतमतांतर होना समय-समय के मानवों के स्वतंत्र चिंतन पर निर्भर करता है / एक-एक मुख्य मत भी दुनिया में बहुत है और उसमें भी अनेक बुद्धिवादी चिंतको के नये-नये मतमतांतर होते रहते हैं। इस अध्ययन में क्रियावादी आदि 4 मुख्य भेद का वर्णन है / 91 /