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________________ आगम निबंधमाला . . का नाश हो जाने से और आत्मा में पूर्ण नम्रता हो जाने से उस आत्मा की शीघ्र मुक्ति हो जाती है। परंतु यह उनका एकांतवाद है / नम्रता अच्छी चीज है किंतु अकेले कोई गुण से मुक्ति कहना उपयुक्त नहीं है। अकेले घी से सीरा नहीं बन सकता / जब कि घी सभी पदार्थों में श्रेष्ठ एवं कीमती है, फिर भी आटा, शक्कर और पानी के बिना अकेले घी से सीरा कदापि नहीं बन सकता / उसी प्रकार अकेले विनय से ही मुक्ति मानना भ्रम है, गलत है / उसके साथ ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप भी चाहिये / तभी मोक्ष की विवेकपूर्ण सांधना हो सकती है / इस मत वाले गधे, कुत्ते, पशु, पक्षी, अधम, उत्तम सभी सामने मिलने वालों को नमस्कार करना ही अपना सिद्धांत मानते हैं और उसी से मोक्ष प्राप्त करने का संतोष करते हैं। (4) अज्ञान वाद- इस मतवालों की ऐसी समझ होती है कि ज्ञान से अनेक विवाद खडे होते हैं, विभिन्नताएँ भी ज्ञान वालों में देखी जाती ह, आत्मा और लोक के संबंध में भिन्न-भिन्न मान्यताएँ ज्ञान के कारण ही है; अतः शांति का स्थान अज्ञान है और शांति ही मुक्ति की निशानी है। वास्तव में अज्ञानवादियों का कोई सिद्धांत नहीं हो सकता। क्यों कि सिद्धांत तो स्वयं ज्ञान स्वरूप होता है / उपदेश देना, किसी को समझाना, चर्चा करना भी ज्ञान के माध्यम से होता है / अज्ञानवादी से वास्तव में पढना, लिखना, बोलना, समझना समझाना, उपदेश देना, चर्चा करना, अपने मत का स्थापन करना और अन्य मत का उत्थापन करना आदि कुछ भी करना नहीं हो सकता / जब कि ये अज्ञानवादी उक्त सभी प्रवत्तियाँ करते हैं / इस प्रकार स्पष्ट ही उनके मत में वचन विरोध होता है / ज्ञान का उपयोग हर कदम-कदम पर करना ही पड़ता है फिर भी ज्ञान की उपेक्षा दिखाना और अज्ञान का दावा करना योग्य नहीं है। सच्चे अर्थ में अज्ञानवादी वे हैं जो आंख, मुँह आदि सभी बंद करके काली अंधेरी कोटडी में अकेले बैठकर संलेखना-संथारा की साधना करे / किसी से कुछ भी कहना, समझाना, चर्चा करना उनके अज्ञानवाद का अपमान है और ज्ञान का उपयोग करना होता है। इस प्रकार अज्ञानवादियों की कथनी और करणी में ही विरोध आता है। 90
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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