________________ आगम निबंधमाला (1) क्रियावाद- इस सिद्धांत वाले क्रिया से मुक्ति मानते हैं / ज्ञान की उपादेयता नहीं स्वीकारते हैं / जब कि ज्ञान के बिना क्रिया अंधी होती है, पूर्ण रूप से फलदायी नहीं हो सकती / इसलिये क्रियावाद के वर्णन की गाथा 11 में कहा गया है कि- तीर्थंकर विद्या और चरण अथवा ज्ञान और क्रिया दोनों से मुक्ति का कथन करते हैं / दूसरी बात यह है कि ये क्रियावादी सभी पदार्थों में अस्तित्व धर्म स्वीकार करते हैं, नास्तित्व धर्म नहीं स्वीकारते / वास्तव में एकांत अस्तित्व मानने पर जगत के व्यवहारों का भी उच्छेद हो जायेगा। अतः प्रत्येक वस्तु अपने अपने स्वरूप से है और पर स्वरूप से नहीं है, ऐसा मानना चाहिये / (2) अक्रियावाद- ये अक्रियावादी तीन प्रकार के हैं- (1) आत्मा को ही नहीं स्वीकारते (2) आत्मा आदि सभी पदार्थ क्षण विनाशी-अनित्य है (3) आत्मा सर्वलोकव्यापी है। इन तीनों के मत में क्रिया का कोई महत्त्व नहीं है / क्यों कि मूल आत्मा संबंधी मान्यता ही अशुद्ध है / इस तरह य एक प्रकार से नास्तिक मत बनते हैं / आत्मा के जन्म-मरण भव भ्रमण की सिद्धि इन तीनों में नहीं हो सकती / क्यों कि (1) आत्मा नहीं तो भव भ्रमण किसका? (2.) आत्मा क्षण विनाशी है तो परभव किसका ? (3) सर्वलोकव्यापी है तो मरकर जायेगा कहाँ ? ये एकांतवादी सही मोक्षमार्ग को समझ ही नहीं सकते, कारण यह है कि मूल मान्यता ही अशुद्ध है / वास्तव में आत्मा है वह द्रव्य से नित्य और पर्याय से अनित्य है और शरीर व्यापी है। एक शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर जन्म मरण करती है / (3) विनयवाद- एकांत विनयवाद भी दूषित है / क्यों कि यह ज्ञान तथा क्रिया का निषेध करके गुणी अवगुणी पापी धर्मी सभी को एक सरीखा करता है / यह वास्तव में विनय धर्म नहीं, अविवेक धर्म है कि किसी प्रकार का विवेक ज्ञान नहीं करना / इस मत वाले वास्तव में अज्ञानी हैं, अविवेकी हैं / इस कारण धर्म के मूल विनय जैसे गुण के आलंबन से भी मोक्ष मार्ग से और मुक्ति से दूर जाते हैं। जिसका कारण यह है कि ज्ञान दर्शन चारित्र तप यह मोक्ष मार्ग है, इसकी उपेक्षा करना ही उनका मूल मंत्र है / इस मान्यता वाले यह मानते हैं कि सभी का विनय करने मात्र से मुक्ति हो जायेगी अर्थात् अहम् भाव / 89 /