________________ आगम निबंधमाला आगे गाथा 22-23-24 में मुनि को निर्वाण मार्ग का उपदेश देने का सूचन किया गया है / वह उपदेश संसार समुद्र में डूबते प्राणियों के लिये द्वीप के समान रक्षक हो / स्वयं मुनि आश्रवों को रोके और आश्रव रहित बनकर शुद्ध अनाश्रव धर्म, संयम-संवर धर्म का कथन करे / क्यों कि वही अनुपम और परिपूर्ण मोक्ष मार्ग है / निबंध-४३ चार समवसरण-चार वाद-३६३ पाखड स्वरूप क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयवादी और अज्ञानवादी ये चार समवसरण हैं / इनके विस्तृत भेद की अपेक्षा 363 मतमतांतर कहे गये हैं / (1) क्रियावादी के 180 भेद होते हैं / मुख्य रूप से नौ तत्त्व हैं उनके स्वतः परत: एवं नित्य अनित्य ऐसे दो दो भेद होते हैं / फिर काल, स्वभाव, नियति, ईश्वर और आत्मा ये पाँच भेद होने से 942424 5=180 कुल भेद होते हैं। (2) अक्रियावादी के 84 भेद होते हैं / मुख्य रूप से सात तत्त्व हैं उन्हें स्वतः परत: दो भेद से गुणा करें, फिर काल, स्वभाव, नियति ईश्वर, यदृच्छा और आत्मा ये 6 भेद से गुणा करें, यथा- 74246-84 कुल भेद हुए। (3) विनयवादी के 32 भेद होते हैं / (1) देवता (2) राजा (3) यति (4) ज्ञाति (5) वृद्ध (6) अधम (7) माता (8) पिता, इन आठ का मन वचन काया और दान से विनय करना चाहिये / इस प्रकार 844-32 कुल भेद होते हैं / (4) अज्ञानवादी के 67 भेद होते हैं / जीवादि 9 तत्त्वों के सात-सात भंग है (1) अस्ति (2) नास्ति (3) अस्तिनास्ति (4.) अवक्तव्य (5) अस्ति अवक्तव्य (6) नास्ति अवक्तव्य (7) अस्ति नास्ति अवक्तव्य यों 947-63 / पहले के चार भंगों में- सत् पदार्थ की उत्पत्ति होती है, यह कौन जानता है और जानने से लाभ भी क्या ह ? उसी प्रकार असत्, सदसत् और अवक्तव्य के लिये उक्त प्रश्न उपस्थित करना ये कुल चार भंग जोडने से 63+4=67 भेद होते हैं / क्रियावादी आदि चारों मतांतरों क सिद्धांत :- ये चारों एकांतवादी हैं। यों तो क्रियावाद, विनयवाद कुछ दरज्जे ठीक भी है किंत एकांत आग्रह होने से अशुद्ध है / 88