________________ आगम निबंधमाला एक सफल होता है एक असफल / एक ही सरीखे स्वभाव वाले अनाज में कोई उगता है कोई नहीं। अत: कार्य के होने में एक मात्र नियति ही कारण है। जैन दर्शन में नियति सहित काल स्वभाव आदि पाँचों समवाय को स्वीकारा है / क्यों कि अनेक कार्यों की निष्पति में स्वभाव प्रमुख होता है / कई कार्यों के होने में काल प्रमुख होता है सर्वत्र एक सा नियम नहीं होता है / नीम का झाड लगने में नीम के बीज का स्वभाव, परिपक्व होने का काल, पुरुषार्थ एवं आकर उगने वाले जीव का आयुष्य आदि कर्म भी कारण भूत होते हैं / कभी स्वभाव के बिना कार्य नहीं होता, कभी नियति के बिना कार्य नहीं होता और अनेक कार्य पुरुषार्थ करने से होते हैं किंतु पुरुषार्थ बिना नहीं होते / अतः ये पाँचों समवाय-संयोग कार्य सिद्ध होने में सापेक्ष है / एकांत नियतिवाद को स्वीकारने पर और अन्य की उपेक्षा या निषेध करने पर कई संसार व्यवहार भी नहीं चल सकते / एकांत आग्रह के कारण नियतिवाद भी दूषित है / वह व्यक्ति के लिये पुरुषार्थ प्रेरक न होकर पुरुषार्थ हीन होने का प्रेरक बनता है / पुरुषार्थ में अनुत्साह पैदा करता है जब कि संसार व्यवहार में सर्वत्र पुरुषार्थ की अतीव आवश्यकता रहती है / अज्ञानवाद का सिद्धांत :- अज्ञानवादी किसी के पास जाने का, संगति-सत्संग करने का, ज्ञान हाँसिल करने का ही निषेध करते हैं / ज्ञान के अभाव में वे स्वयं अज्ञानी होने से दूसरों को क्या मार्गदर्शन दे सकते ? अर्थात् स्वयं अज्ञान में डूबे व्यक्ति दूसरों को ज्ञान नहीं दे सकता / अंधा व्यक्ति दूसरों को मार्ग कैसे बता सकता है ? अंधे व्यक्ति के पीछे चलने वाले उत्पथगामी होते हैं। वैसे ही अज्ञानवादिओं की बात अनुसरण करने योग्य नहीं होती / शास्त्रकारने इन्हें मृग की उपमा दी है / जो त्राण स्थान में शंकित होता है और जाल में फँस जाता है / वैसे ही अज्ञानवादी अज्ञान जाल में फँस जाते हैं / : . अज्ञानवादी को किसी प्रकार के विमर्श की भी योग्यता नहीं हो सकती / क्यों कि विमर्श के लिये भी ज्ञान आवश्यक है / इस प्रकार