________________ आगम निबंधमाला आत्मा नामका कोई पदार्थ नहीं है / इन्हीं पांच स्कंधो से संसार चलता है / आत्मा को नहीं मानना स्वयं का इन्कार करना है / जब स्वयं कोई तत्त्व नहीं है तो कर्तापन भोक्तापन आदि कुछ नहीं रहता है / स्वर्ग नरक मानते हुए भी आत्मा बिना उनका कोई अर्थ नहीं रहता है / कौन स्वर्ग में जाता है, कौन नरक में जाता है ऐसा कोई निर्णय नहीं होता है / - अत: यह क्षणिकवाद भी आत्मकल्याण साधना में अपूर्ण है, अयोग्य है / 1 // पृथ्वी, जल, तेज और वायु इन चार धातुओं को ही सर्व जगत मानते हैं ये भी आत्मा को या चार के अतिरिक्त किसी तत्त्व को नहीं मानते / ये भी पदार्थ को क्षण विनाशी मानते हैं / 2 // शास्त्रकार ने इन सभी को अफलवादी कहा है / इस प्रकार के एकांत सिद्धांत से आत्मा और कर्म तथा उनके फल भोगने की व्यवस्था बराबर नहीं हो सकती है। फिर भी ये सभी मत वाले यह कथन करते हैं कि हमारे मत को स्वीकार करलो इसी से तुम्हारी मुक्ति (सिद्धि) हो जायेगी, कल्याण हो जायेगा / परंतु वास्तव में आत्मा और कर्मबंध विमोक्ष का सही स्वरूप समझे बिना, माने बिना कोई साधना और उसका प्रतिफल हो नहीं सकता है / क्यों कि किसी के मत में आत्मा नहीं है, किसी में परभव पुनर्जन्म नहीं है, किसी में आत्मा अक्रिय है अकर्ता है तो फल भोक्ता भी नहीं है / तो फिर उनके लिये भी कोई साधना की आवश्यकता नहीं रहती / __ अत: आत्म द्रव्य का सही स्वरूप स्वीकार करना, धर्म साधनाओं के लिये प्रथम जरूरी है / अन्यथा मिथ्या समझ के कारण सही साधना और सही परिणाम प्राप्त होना संभव नहीं है / नियतिवाद का सिद्धांत :- नियतिवादी एकांत नियति से ही सारे संसार के कार्यों की निष्पत्ति मानता है / वह काल, स्वभाव, कर्म और पुरुषार्थ को कार्य के होने में आवश्यक नहीं मानता है / उनका कहना है कि एक सरीखे काल में काम करने वाले दो व्यक्ति में 80