________________ आगम निबंधमाला कर्तव्य से सभी दुःखी होंगे / नरकादि चार गति और मोक्ष मानना भी अर्थ शून्य होगा। इस सिद्धांत को मानने वाले सांख्यमत वालों की अनेक प्रकार की साधनाएँ व्यर्थ होगी। इस मत में आत्मा और आत्मा की समस्त क्रियाएँ मानते हुए भी आत्मा को निर्लेप और अकर्ता माना गया है / जब कि सुखी दु:खी होते हुए जीव प्रत्यक्ष सिद्ध है और यह सब अनुभव जीव को ही हो सकता है / फिर भी मिथ्यात्व के उदय से ऐसा मानने वाले अनेक लोग होते हैं / नरक स्वर्ग मोक्ष मानते हुए भी ये आत्मा को अकर्ता मानकर उसे नरक आदि में जाना भी स्वीकार करते हैं / शास्त्रकार कहते हैं कि ये अज्ञान अंधकार से संसार अंधकार में भ्रमण करने वाले होते हैं- तमाओ ते तमं जंति, मंदा मोहेण पाउडा / आत्म षष्टवाद :- इस सिद्धांत वाले पाँच भूत और आत्मा इन छहों तत्त्वों का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकारते हैं किंतु एकांत रूप से छहों को नित्य अविनाशी मानते है / कथंचित् नित्य, कथंचित् अनित्य; द्रव्यं की अपेक्षा नित्य, पर्याय की अपेक्षा अनित्य; ऐसा नहीं मानते / एकांत नित्य का मिथ्याग्रह पकडना ही उनका अयोग्य है / क्षणिकवाद का सिद्धांत :- इस सिद्धांत वाले प्रत्येक तत्त्व की प्रतिक्षण उत्पत्ति और विनाश मानते हैं / ये पदार्थ की परिवर्तित होने वाली पर्याय को द्रव्य का परिवर्तित होना मान लेते हैं / द्रव्य और पर्याय का विभाग नहीं मानते हैं। .. ये दो प्रकार के हैं (1) पाँच स्कंध मानने वाले (2) चार धातु मानने वाले / पाँच स्कंध ये है- (1) रूपस्कंध (2) वेदनास्कंध (3) संज्ञास्कंध (4) संस्कारस्कंध (5) विज्ञानस्कंध / शीत आदि विविध रूपों में विकार प्राप्त होने के स्वभाव वाला जो धर्म है वह सब एक होकर रूपस्कंध बन जाता है। सुख दुःख वेदन करने के स्वभाव वाले धर्म का एकत्रित होना वेदनास्कंध है / विभिन्न संज्ञाओ के कारण वस्तु विशेष को पहिचानने के लक्षण वाला स्कंध संज्ञास्कंध है / पुण्य पाप अदि धर्म-राशि के लक्षण वाला स्कंध संस्कारस्कंध है / जो जानने के लक्षण वाला है उस रूपविज्ञान रसविज्ञान आदि विज्ञान समुदाय को विज्ञानस्कंध कहते हैं / इन पांच स्कंधो के अतिरिक्त 79